एकाशीतितम (81) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: एकाशीतितम अध्याय: श्लोक 32-37 का हिन्दी अनुवाद
इस शर्मिष्ठा को एकान्त में बुलाकर न तो इससे बात करना और न इसके शरीर का स्पर्श ही करना। अब तुम विवाह करके इसे अपनी पत्नी बनाओ। इससे तुम्हें इच्छानुसार फल की प्राप्ति होगी। वैशम्पायन जी कहते हैं- जनमेजय! शुक्राचार्य के ऐसा कहने पर राजा ययाति ने उनकी परिक्रमा की और शास्त्रोक्त विधि से मंगलमय विवाह-कार्य सम्पन्न किया। शुक्राचार्य देवयानी-जैसी उत्तम कन्या शर्मिष्ठा और दो हजार कन्याओं तथा महान् वैभव को पाकर दैत्यों एवं शुक्राचार्य से पूजित हो, उन महात्मा की आज्ञा ले नृपश्रेष्ठ ययाति बड़े हर्ष के साथ अपनी राजधानी को गये। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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