षडविंशत्यधिकशततम (126) अध्याय: आदि पर्व (सम्भव पर्व)
महाभारत: आदि पर्व: षडविंशत्यधिकशततम अध्याय: श्लोक 21-32 का हिन्दी अनुवाद
कुन्ती के आर्तनाद से मनुष्यों सहित समस्त पशु आदि भी करुण क्रन्दन करने लगे। शन्तनुनन्दन भीष्म, परम बुद्धिमान् विदुर तथा सम्पूर्ण कौरव भी अत्यन्त दु:ख में निमग्न हो रोने लगे। तदनन्तर भीष्म, विदुर, राजा धृतराष्ट्र तथा पाण्डवों के सहित कुरु-कुल की सभी स्त्रियों ने राजा पाण्डु के लिये जलाञ्जलि दी। उस समय सभी पाण्डव पिता के लिये रो रहे थे। शन्तनुनन्दन भीष्म, विदुर तथा अन्य भाई-बन्धुओं की भी यही दशा थी। सबने जलाञ्जलि देने की क्रिया पूरी की। जलाञ्जलि दान करके शोक से दुर्बल हुए पाण्डवों को साथ ले मन्त्री आदि सब लोग स्वयं भी दु:खी हो उन सबको समझा-बुझाकर शोक करने से रोकने लगे। राजन्! बारह रात्रियों तक जिस प्रकार बन्धु-बान्धवों सहित पाण्डव भूमि पर सोये, उसी प्रकार ब्राह्मण आदि नागरिक भी धरती पर सोते रहे। उतने दिनों तक हस्तिनापुर नगर पाण्डवों के साथ आनन्द और हर्षोल्लास से शून्य रहा। बूढ़ों से लेकर बच्चे तक सभी वहाँ दु:ख में डूबे रहे। सारा नगर ही अस्वस्थचित्त हो गया था। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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