महाभारत अनुशासन पर्व अध्याय 25 श्लोक 1-24

पञ्चविंश (25) अध्‍याय: अनुशासन पर्व (दानधर्म पर्व)

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महाभारत: अनुशासन पर्व: पंचविंश अध्याय: श्लोक 1-24 का हिन्दी अनुवाद


विभिन्न तीर्थों के माहात्म्य का वर्णन

युधिष्ठिर ने पूछा- महाज्ञानी भरतश्रेष्ठ! तीर्थों का दर्शन, उनमें किया जाने वाला स्नान और उनकी महिमा का श्रवण श्रेयस्कर बताया गया है। अतः मैं तीर्थों का यथावत रूप से वर्णन सुनना चाहता हूँ। भरतभूषण! इस पृथ्वी पर जो-जो पवित्र तीर्थ हैं, उन्हें मैं नियमपूर्वक सुनना चाहता हूँ। आप उन्हें बतलाने की कृपा करें।

भीष्म जी ने कहा- महातेजस्वी नरेश! पूर्वकाल में अंगिरा मुनि ने तीर्थ समुदाय का वर्णन किया था। तुम्हारा भला हो, तुम उसी को सुनो। इससे तुम्हें उत्‍तम धर्म की प्राप्ति होगी।

एक समय की बात है, महामुनि विप्रवर धैर्यवान अंगिरा अपने तपोवन में विराजमान थे। उस समय कठिन व्रत का पालन करने वाले महर्षि गौतम ने उनके पास जाकर पूछा- भगवन! महामुने! मुझे तीर्थों के सम्बन्ध में कुछ धर्म विषयक संदेह है। वह सब मैं सुनना चाहता हूँ। आप कृपया मुझे बताइये। महाज्ञानी मुनीश्वर! उन तीर्थों में स्नान करने से मृत्यु के बाद किस फल की प्राप्ति होती है? इस विषय में जैसी वस्तु स्थिति है, वह बताइये।

अंगिरा ने कहा- मुने! मनुष्य उपवास करके चन्द्रभागा (चनाव) और तरंगमालिनी वितस्ता (झेलम) में सात दिन तक स्नान करे तो मुनि के समान निर्मल हो जाता है। काश्मीर प्रान्त की जो-जो नदियाँ महानद सिन्धु में मिलती हैं, उनमें तथा सिन्धु में स्नान करके शीलवान पुरुष मरने के बाद स्वर्ग में जाता है। पुष्कर, प्रभास, नैमिषारण्य, सागरोदक (समुद्रजल), देविका, इन्द्रमार्ग तथा स्वर्गविन्दु- इन तीर्थों में स्नान करने से मनुष्य विमान पर बैठकर स्वर्ग में जाता है और अप्सराएं उसकी स्तुति करती हुई उसे जगाती हैं। जो मनुष्य मन और इन्द्रियों को संयम में रखते हुए हिरण्यविन्दु तीर्थ में स्नान करके वहाँ के प्रमुख देवता भगवान कुशेशय को प्रणाम करता है, उसके सारे पाप धूल जाते हैं। गन्धमादन पर्वत के निकट इन्द्रतोया नदी में और कुरंग क्षेत्र के भीतर करतोया नदी में संयतचित्त एंव शुद्धभाव से स्नान करके तीन रात उपवास करने वाला मनुष्य अश्वमेध यज्ञ का फल पाता है। गंगाद्वार, कुशावर्त, बिल्वक तीर्थ, नील पर्वत तथा कनखल में स्नान करके पापरहित हुआ मनुष्य स्वर्गलोक को जाता है। यदि कोई क्रोधहीन, सत्यप्रतिज्ञ और अहिंसक होकर ब्रह्मचर्य के पालनपूर्वक सलिलह्नद नामक तीर्थ में डुबकी लगाये तो उसे अश्वमेध यज्ञ का फल मिलता है। जहाँ उत्तर दिशा में भागीरथी गंगा गिरती है और वहाँ उनका स्रोत तीन भागों में विभक्त हो जाता है, वह भगवान महेश्वर का त्रिस्थान नामक तीर्थ है। जो मनुष्य एक मास तक निराहार रहकर वहाँ स्नान करता है, उसे देवताओं का प्रत्यक्ष दर्शन होता है।

सप्तगंग, त्रिगंग और इन्द्रमार्ग में पितरों का तर्पण करने वाला मनुष्य यदि पुनर्जन्म लेता है तो उसे अमृत भोजन मिलता है (अर्थात वह देवता हो जाता है।)। महाश्रम तीर्थ में स्नान करके प्रतिदिन पवित्र भाव से अग्निहोत्र करते हुए जो एक महीने तक उपवास करता है, वह उतने ही समय में सिद्ध हो जाता है। जो लोभ का त्याग करके भृगुतुंग-क्षेत्र के महाह्नद नामक तीर्थ में स्नान करता है और तीन रात तक भोजन छोड़ देता है, वह ब्रह्महत्या के पाप से मुक्त हो जाता है। कन्याकूप में स्नान करके बलाका तीर्थ में तर्पण करने वाला पुरुष देवताओं में कीर्ति पाता है और अपने यश से प्रकाशित होता है। देविका में स्नान करके सुन्दरिकाकुण्ड और अश्विनीतीर्थ में स्नान करने पर मृत्यु के पश्चात दूसरे जन्म में मनुष्य को रूप और तेज की प्राप्ति होती है। महागंगा और कृत्तिकागंरक तीर्थ में स्नान करके एक पक्ष तक निराहार रहने वाला मनुष्य निर्मल-निष्पाप होकर स्वर्गलोक जाता है। जो वैमानिक और किकिंणीकाश्रम तीर्थ में स्नान करता है, वह अप्सराओं के दिव्यलोक में जाकर सम्मानित होता और इच्छानुसार विचरता है। जो कालिकाश्रम में स्नान करके विपाशा (व्यास) नदी में पितरों का तर्पण करता है और क्रोध को जीतकर ब्रह्मचर्य का पालन करते हुए तीन रात वहाँ निवास करता है, वह जन्म-मरण के बन्धन से छूट जाता है।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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