मंगलागौरी

मंगलागौरी
मंगलागौरी
पूरा नाम मंगलागौरी
अभिभावक पिता- श्रीनरभेराय मुकुन्‍दराय बड़नगरा नागर
पति/पत्नी नर्मदाशंकर लाखिया
कर्म भूमि भारत
मुख्य रचनाएँ ‘यमुनाजी की आरती’ और 'पाटन के गिरिधारी जी का गरबा’।
भाषा गुजराती और ब्रजभाषा
प्रसिद्धि संत
नागरिकता भारतीय
अन्य जानकारी मंगलागौरी का जीवन पूर्णरूप से भगवान के चरणारविन्‍द में समर्पित था। जीवन के अन्तिम दिनों में उनके नेत्र चले गये थे। भगवत्‍सेवा में ही उनका अधिकांश समय व्यतीत होता था।

मंगलागौरी का चरित्र अत्‍यन्‍त पवित्र और चित्‍ताकर्षक है। उन्‍होंने आजीवन भगवान के रूप-माधुर्य का रसास्‍वादन करके जो सरस संगीत और काव्‍य की धारा उत्तर गुजरात के पाटन में बहायी, वह उनकी भक्तिनिष्‍ठा की उज्‍ज्‍वल और स्‍थायी प्रतीक है।

परिचय

कई वर्षों पहले की बात है, मंगलागौरी ने गुजरात को अपनी उपस्थिति से गौरवान्वित किया था। उनके पिता पाटन परगने के प्रसिद्ध जमींदार और शासक श्रीनरभेराय मुकुन्‍दराय बड़नगरा नागर थे। वे अत्‍यन्‍त समृद्ध, ऐश्‍वर्यशाली और भक्तिभावापन्‍न व्‍यक्ति थे। मंगलागौरी उनके साथ नित्‍य मन्दिर में भगवान का दर्शन करने जाया करती थीं। उनके भावी जीवन-विकास में इस शुभ संस्‍कार का बड़ा प्रभाव पड़ा था।[1]

विषम परिस्थितियाँ

मंगला के पति नर्मदाशंकर लाखिया ने थोड़े दिनों तक गृहस्‍थाश्रम में रहने के बाद काशी में जाकर संन्‍यास ले लिया, कालान्‍तर में उनके दोनों पुत्रों की मृत्‍यु हो गयी। इन परिस्थितियों ने उनका जीवन ही बदल दिया; वे अपने पिता के घर चली आयीं और जीवन के शेष दिन उन्‍होंने वहीं पूरे किये।

भजन-पूजन

भगवत्‍सेवा में ही मंगला का अधिकांश समय बीतने लगा। वे रात-दिन भगवान के श्रृंगार और भजन-पूजन तथा स्‍तवन में ही संलग्‍न रहती थीं। उनकी संगीत-निपुणता ने उन्‍हें मधुर काव्‍य-कण्‍ठ प्रदान किया और वे भगवान की लीला के पदों की रचना करने लगीं। आस-पास से स्त्रियों का समूह उमड़कर उनके सम्‍पर्क में भजन करने लगा, पाटनक्षेत्र पवित्र हो उठा, दिशाएं भगवत-माधुरी से सम्‍पन्‍न हो उठीं।

मंगलागौरी का जीवन पूर्णरूप से भगवान के चरणारविन्‍द में समर्पित था। जीवन के अन्तिम दिनों में उनके नेत्र चले गये थे। फिर भी उनके अधरों पर रामनाम का अमृत बहता रहता था, हाथों में माला का नृत्‍य होता रहता था। पाटन के ऐश्‍वर्यशाली व्‍यक्ति गोविन्‍दराय मजूमदार के जीवन पर भी मंगलागौरी की भक्तिनिष्‍ठा का बड़ा प्रभाव था, वे उनके भाई थे। बहिन को कीर्तन करते देखकर वे आवेश में भगवान के श्रीविग्रह के सामने पैरों में घुँघरू बांधकर नाचा करते थे। उनके सुपुत्र श्रीवैकुण्‍ठरायजी, रणछोड़रायजी और गोपालरायजी भी बड़े भागवत हुए।

पद रचना

मंगलागौरी ने गुजराती और ब्रजभाषा- दोनों भाषाओं में पद रचना की है। ‘यमुनाजी की आरती’ और 'पाटन के गिरिधारी जी का गरबा’ अत्‍यन्‍त प्रसिद्ध रचनाएं हैं। उनकी अन्‍य देवों में भी निष्‍ठा थी। महादेव, गणेश आदि के सम्‍बन्‍ध में उनके अनेक पद मिलते हैं।

मृत्यु

एक बार मन्दिर में धूम-धाम से कीर्तन हो रहा था, भक्‍तजन प्रेमविमुग्‍ध होकर भगवन्‍नाम-उच्‍चारण कर रहे थे। उसी तुमुल हरिनाम ध्‍वनि का रसास्‍वादन करते हुए मंगला ने संसार से विदा ली। वे वास्‍तव में महान भक्‍तात्‍मा थीं।[1]


टीका टिप्पणी और संदर्भ

  • [लेखक- श्रीदेवेन्‍द्रराय पुरुषोत्‍तमराय मजूमदार, बी. ए. कोविद]
  1. 1.0 1.1 पुस्तक- भक्त चरितांक | प्रकाशक- गीता प्रेस, गोरखपुर | विक्रमी संवत- 2071 (वर्ष-2014) | पृष्ठ संख्या- 736

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