भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 207

भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

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अध्याय-11
भगवान् का दिव्य रूपान्तर
अर्जुन भगवान् के सार्वभौमिक (विश्व) रूप को देखना चाहता है

   

अर्जुन के स्तुति के श्लोक

अर्जुन उवाच

36.स्थाने हृषीकेश तव प्रकीर्त्या,
जगत्प्रहृष्यत्यनुरज्यते च।
रक्षांसि भीतानि दिशो द्रवन्ति,
सर्वे नमस्यन्ति च सिद्धसंघाः॥

अर्जुन ने कहाःहे हृषीकेश (कृष्ण), संसार जो तेरे यश के गीत गाने में आनन्द और प्रसन्नता का अनुभव करता है, वह ठीक ही करता है। राक्षस डरकर सब दिशाओं मे भाग रहे हैं और सिद्ध (पूर्णता को प्राप्त हुए) लोगों के समूह तुझे (आदर से) नमस्कार कर रहे हैं।आराधना और परिताप के तीव्र भावावेश में अर्जुन भगवान् की स्तुति करता है। वह न केवल काल की विनाशकारी शक्ति को देखता है, अपुति आध्यात्मिक भगवत्-सान्निध्य और सृष्टि के नियामक विधान को भी देखता है। जहाँ इनमें से पहला आतंक उत्पन्न करता है, वहाँ पिछला हर्षावेगमय उल्लास की भावना को जन्म देता है और अर्जुन आत्यन्तिक स्तुति में अपनी आत्मा को उडे़ल देता है।

37.कस्माच्च ते न नमेरन्महात्मन्,
गरीयसे ब्रह्मणोअप्यादिकर्त्रे।
अनन्त देवेश जगन्निवास,
त्वमक्षरं सदसत्तत्परं यत्॥

और हे महान् आत्मा वाले, वे तुझे प्रणाम क्यों न करें, तू जो कि आदिस्रष्टा ब्रह्मा से भी महान् है? हे अनन्त, देवताओं के स्वामी, संसार के स्वामी, संसार के आश्रय, तू अनश्वर है, तू अस्तित्वमान् और अनस्तित्वमान् है; और उससे भी परे जो कुछ है, वह तू है। आदिकत्रे : तू सर्वप्रथम स्रष्टा है या तू ब्रह्म तक का स्रष्टा है।जगन्निवास: संसार का आश्रय। परमात्मा, जिसमें कि यह जगत् निवास करता है।

38.त्वमादिदेवः पुरुषः पुराण-
स्त्वमस्य विश्वस्य परं निधानम्।
वेत्तासि वेद्यं च परं च धाम,
त्वया ततं विश्वमनन्तरूप॥

तू देवताओं में सर्वप्रथम है; तू आद्यपुरुष है; तू इस संसार का परम विश्राम-स्थान है। तू ही ज्ञाता है और तू ही ज्ञेय है और तू ही सर्वोच्च लक्ष्य है। और हे अनन्त रूपों वाले, तूने ही इस संसार को व्याप्त किया हुआ है।

39.वायुर्यमोऽग्निर्वरुणः शशांक,
प्रजापतिस्त्वं प्रपितामहश्च।
नमो नमस्तेस्तु सहस्रकृत्वः,
पुनश्च भूयोअपि नमो नमस्ते॥

तू वायु है; तू यम (विनाश करने वाला) है; तू अग्नि है; तू वरुण (समुन्द्र का देवता) है; और तू शशांक (चन्द्रमा) है और प्रजापित, (सबका) पितामह है। तुझे हजार बार नमस्कार है; तुझे बारम्बार नमस्कार है।कुछ के मतानुसार अर्थ है- ’’प्रजापति और सबका पितामह है।’’

40.नमः पुरस्तादथ पृष्ठतस्ते,
नमोऽस्तु ते सर्वत एव सर्व।
अनन्तवीर्यामित विक्रमस्त्वं,
सर्व समाप्नोषि ततोऽसि सर्वः॥

तुझे सामने से नमस्कार है; तुझे पीछे की ओर से नमस्कार है; हे सब-कुछ, तुझे सब ओर से नमस्कार है। तेरी शक्ति असीम है और तेरा बल अमाप है; तू सबमें रमा हुआ है, इसलिए तू सब-कुद है।भगवान का निवास अन्दर, बाहर, ऊपर, नीचे, चारों ओर, सब जग है और ऐसा कोई स्थान नहीं है, जहाँ वह न हो। देखिए मुण्डकोपनिषद्, 2, 2, 11। छान्दोग्य उपनिषद् 7, 25।इस सत्य को, कि हम सब एक ही भगवान् के प्राणी हैं और वह हममें से प्रत्येक में और सबमें विद्यमान हैं, बार-बार दुहराया गया है।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

भगवद्गीता -राधाकृष्णन
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
परिचय 1
1. अर्जुन की दुविधा और विषाद 63
2. सांख्य-सिद्धान्त और योग का अभ्यास 79
3. कर्मयोग या कार्य की पद्धति 107
4. ज्ञानमार्ग 124
5. सच्चा संन्यास 143
6. सच्चा योग 152
7. ईश्वर और जगत 168
8. विश्व के विकास का क्रम 176
9. भगवान अपनी सृष्टि से बड़ा है 181
10. परमात्मा सबका मूल है; उसे जान लेना सब-कुछ जान लेना है 192
11. भगवान का दिव्य रूपान्तर 200
12. व्यक्तिक भगवान की पूजा परब्रह्म की उपासना की अपेक्षा 211
13. शरीर क्षेत्र है, आत्मा क्षेत्रज्ञ है; और इन दोनों में अन्तर 215
14. सब वस्तुओं और प्राणियों का रहस्यमय जनक 222
15. जीवन का वृक्ष 227
16. दैवीय और आसुरीय मन का स्वभाव 231
17. धार्मिक तत्त्व पर लागू किए गए तीनों गुण 235
18. निष्कर्ष 239
19. अंतिम पृष्ठ 254

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