भगवद्गीता -राधाकृष्णन पृ. 129

भगवद्गीता -डॉ. सर्वेपल्लि राधाकृष्णन

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अध्याय-4
ज्ञानमार्ग


भागवत में कहा हैः ’’सर्वव्यापी भगवान् केवल दानवीय शक्तियों का विनाश करने के लिए ही नहीं, अपितु मर्त्य मनुष्यों को शिक्षा देने के लिए भी प्रकट होता है, अन्यथा आनन्दमय भगवान् सीता के विषय में चिन्ता आदि का अनुभव किस प्रकार कर सकता है? ’’[1] वह भूख और प्यास, शोक और कष्ट, एकान्त ओर परित्यक्तता का अनुभव करता है। वह इन सब पर विजय प्राप्त करता है और हमसे कहता है कि हम भी उसके उदाहरण से साहस और धैर्य प्राप्त करें। वह न केवल हमें उस सच्चे सिद्धान्त की शिक्षा देता है, जिसके द्वारा हम अपने पृथक् ऐहिक स्वार्थ के प्रति मर- से जाते हैं और कालातीत आत्मा के रूप में संयुक्त हो जाते हैं, अपतिु वह अपने-आप को करुणानिधि के रूप में भी प्रस्तुत करता है। आत्माओं से यह कहकर, कि वे उस पर विश्वास करें और उससे प्रेम करें, वह उन्हें प्रक्रिया का निर्देशन-भर है, जो मनुष्य के हृदय में सदा चलती रहती है। अवतार हमें वह बनने में सहायता देता है, जो बन पाना हमारे लिए सम्भव है। हिन्दू और बौद्ध विचारधाराओं में किसी एक ऐतिहासिक तथ्य के प्रति दासता का भाव नहीं है। हम सबके सब दिव्य स्तर तक उठ सकते हैं और अवतार हमें इस आन्तरिक उपलब्धि को प्राप्त करने में सहायता देते हैं।
गौतम बुद्ध से तुलना कीजिए: ’’तब भगवान् बोले और उन्होंने कहा: ’वसत्थो, इस बात को समझ लो कि समय-समय पर ऐसा तथागत संसार में जन्म लेता है, जो पूरी तरह ज्ञान से प्रकाशित होता है। वह लोकों के ज्ञान के कारण प्रसन्न रहता है। पथभ्रष्ट मत्र्यों के लिए वह अद्वितीय मार्गदर्शक होता है। वह देवताओं और मनुष्यों का गुरु होता है। वह भगवान् बुद्ध है। वह सत्य शब्दों और सत्य की भावना की घोषणा करता है, जो आदि, मध्य और अन्त, सबमें सुन्दर होती है। वह एक पवित्र और पूर्ण उच्चतर जीवन का ज्ञान लोगों को कराता है। वह एक पवित्र और पूर्ण उच्चतर जीवन का ज्ञान लोगों को कराता है। ’’ [2] महायान बौद्ध-सम्प्रदाय के अनुसार गौतम बुद्ध से पहले भी बहुत- से बुद्ध हो चुके हैं और गौतम के बाद एक और बुद्ध मैत्रेय के रूप में होगा। स्वयं गौतम के अनेक जन्म हुए थे, जिनमें उसने वे गुण संचित किए थे, जिनसे वह सत्य को खोज पाने में समर्थ हुआ। अन्य लोगों के लिए भी ऐसा ही कर पाना सम्भव है। हम देखते हैं कि बौद्धधर्म में दीक्षा लेने वाले लोग बुद्ध का ज्ञान प्राप्त करने की शपथ लेते हैं। ये सम्प्रदाय किसी एक विशिष्ट समय में ही हुई किसी एक ही अनन्य प्रकाशना में विश्वास नहीं रखते।


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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मत्र्यावरारास्तित्वह मत्र्यशिक्षणं रक्षोवधायैव न केवलं विभोः। कुतोअन्यथा स्याद्रमतः स्व आत्मनः सीताकृतानि व्यसनानीश्वरस्य ॥
  2. तेबिज्ज सुत। तुलना कीजिए, रोमन्स: ’’यदि हम उसकी जैसी मृत्यु द्वारा ऊँचे उठकर उसके रूप तक पहुँच जाएं, तो हम उसी के जैसे पुनरुत्थान द्वारा उठकर उस तक पहुँच जाएंगे। हमें यह ज्ञान रहेगा कि जिस प्रकार हम कर रहे हैं, उसी प्रकार हमारी पुरातन आत्मा उसके साथ पापपूर्ण शरीर का दमन करने के लिए क्रास पर चढ़ाई गई थी। ’’ 6,6, माफ्रेट का अंगे्रजी अनुवाद।

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भगवद्गीता -राधाकृष्णन
अध्याय अध्याय का नाम पृष्ठ संख्या
परिचय 1
1. अर्जुन की दुविधा और विषाद 63
2. सांख्य-सिद्धान्त और योग का अभ्यास 79
3. कर्मयोग या कार्य की पद्धति 107
4. ज्ञानमार्ग 124
5. सच्चा संन्यास 143
6. सच्चा योग 152
7. ईश्वर और जगत 168
8. विश्व के विकास का क्रम 176
9. भगवान अपनी सृष्टि से बड़ा है 181
10. परमात्मा सबका मूल है; उसे जान लेना सब-कुछ जान लेना है 192
11. भगवान का दिव्य रूपान्तर 200
12. व्यक्तिक भगवान की पूजा परब्रह्म की उपासना की अपेक्षा 211
13. शरीर क्षेत्र है, आत्मा क्षेत्रज्ञ है; और इन दोनों में अन्तर 215
14. सब वस्तुओं और प्राणियों का रहस्यमय जनक 222
15. जीवन का वृक्ष 227
16. दैवीय और आसुरीय मन का स्वभाव 231
17. धार्मिक तत्त्व पर लागू किए गए तीनों गुण 235
18. निष्कर्ष 239
19. अंतिम पृष्ठ 254

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