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भगवद्गीता -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
जगत् की एकताअव्यक्ताद्व्यक्तय: सर्वा: प्रभवन्त्यहरागमे । दिन आरम्भ होने पर सब अव्यक्त में से व्यक्त होते हैं। रात होने पर वे पुनः अव्यक्त में विलीन हो जाते हैं। भूतग्राम: स एवायं भूत्वा प्रलीयते । प्राणियों का वह समस्त समुदाय इस प्रकार बरबस पैदा होकर रात होने पर विलीन हो जाता है और दिन होने पर प्रकट होता है। परस्तस्मात्तु भावोऽन्योऽव्यक्तोऽव्यक्तात्सनातन: । इस अव्यक्त से परे दूसरा सनातन अव्यक्त भाव है। समस्त भूतों के नष्ट होने पर भी वह नष्ट नहीं होता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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