भगवद्गीता -चक्रवर्ती राजगोपालाचार्य
आत्मान त्वेवाहं जातु नासं न त्वं नेमे जनाधिपा:। मैं, तू अथवा ये राजा पहले कभी नहीं थे या हममें से कोई भविष्य में कभी न होगा, ऐसा नहीं है। देहिनोऽस्मिन्यथा देहे कौमारं यौवनं जरा । जिस प्रकार देहधारी आत्मा शरीर की कुमार, युवा तथा वृद्ध अवस्था से पार होता है। उसी प्रकार वह दूसरे शरीर में भी चला जाता है। बुद्धिमान लोग उसकी इस देहान्तर-प्राप्ति से विचलित नहीं होते। अविनाशि तु तद्विद्धि येन सर्वमिदं ततम् । जो आत्मा इस पृथ्वी के समस्त प्राणियों में व्याप्त है उसे तू अविनाशी जान। उस अविनाशी का नाश कोई नहीं कर सकता। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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