भक्त लाखा
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पूरा नाम | भक्त लाखा |
पति/पत्नी | खेमाबाई |
संतान | पुत्र- देवा, पुत्री- गंगाबाई |
प्रसिद्धि | भक्त |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | भक्त लाखा भगवान बालकृष्ण के परम भक्त थे। उनके घर में दोनों समय बालकृष्ण की पूजा होती थी। |
भक्त लाखा भगवान बालकृष्ण के परम भक्त थे। वह दिन-रात भगवद्भजन में बिताते थे। लाखा जी का नियम था- रोज सबेरे 'गीता' का एक पूरा पाठ करना और रात को सोने से पहले 'विष्णुसहस्रनाम' के पचास पाठ कर लेना।
परिचय
भक्त लाखा जी जाति के गौड़ ब्राह्मण थे। राजपूताने के एक छोटे-से गाँव में उनका घर था। लाखा जी विशेष पढ़े तो नहीं थे, परंतु विष्णु-सहस्त्रनाम और गीता उनको कण्ठस्थ थे और भगवान में उनका अटूट विश्वास था। ये खेती का काम करते थे। इनकी स्त्री खेमाबाई बड़ी साध्वी और पतिव्रता थी। घर का सारा काम तो करती ही, खेती के काम में भी पति की पूरी सहायता करती थी; और पति की सेवा किये बिना तो उसका नित्य का व्रत ही पूरा नहीं होता था। वह प्रात: काल स्नान करके पति के दाहिने चरण के अँगूठे को धोकर पीती। लाखा जी को संकोच होता, वे मना भी करते; परंतु खेमाबाई के आग्रह के सामने उनकी कुछ भी न चलती।[1]
पुत्री का विवाह
लाखा जी के दो सन्तान थीं- एक पुत्र, दूसरी कन्या। पुत्र का नाम था देवा और कन्या का गंगाबाई। पुत्र के विवाह की तो जल्दी नहीं थी, परंतु धर्मभीरु ब्राह्मण को कन्या के विवाह की बड़ी चिन्ता थी। चेष्टा करते-करते समीप के ही एक गाँव में योग्य वर मिल गया। वर के पिता सन्तोषी ब्राह्मण थे। सम्बन्ध हो गया और समय पर लाखा जी ने बड़े चाव से अपनी कन्या गंगाबाई का विवाह करके उसे ससुराल भेज दिया। इस समय गंगाबाई की उम्र बारह वर्ष की थी। देवा उम्र में बड़ा था, परंतु उसका विवाह कन्या के विवाह के दो साल बाद किया गया। बहू घर में आयी। बहू का नाम था लिछमी। वह स्वभाव में साक्षात लक्ष्मी ही थी। इस प्रकार लाखा जी सब तरह से सुखी थे।
गीता पाठ
लाखा जी का नियम था- रोज सबेरे गीता जी का एक पूरा पाठ करना और रात को सोने से पहले-पहले विष्णु-सहस्रनाम के पचास पाठ कर लेना। उनके मुख से पाठ होता रहता और हाथों से काम! यह नियम, जब वे दस वर्ष के थे, तभी पिता ने दिलाया था, जो जीवनभर अखण्डरूप से चला। इसी नियम ने उनको भगवद्विश्वासरूपी परम निधि प्रदान की।
- लगभग पचीस वर्ष बाद लाखाजी और खेमाबाई ने एक ही दिन श्री भगवान का नाम जपते हुए भगवान की मूर्ति के सामने ही शरीर त्याग दिये। देव जी ने उनका शास्त्रोक्त रीति से अन्त्येष्टि-संस्कार तथा श्राद्ध किया। पुत्र, पुत्रवधू और कन्या ने उनके लिये तीन हजार विष्णुसहस्रनाम के पाठ किये।[1]
टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 पुस्तक- भक्त चरितांक | प्रकाशक- गीता प्रेस, गोरखपुर | विक्रमी संवत- 2071 (वर्ष-2014) | पृष्ठ संख्या- 692
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