बाँसुरी दीजियै ब्रज नारी2 -सूरदास

सूरसागर

1.परिशिष्ट

Prev.png




यह बंसी खोजत फिरै ब्रह्मा सिव मुनिनाथ।
धरे मकुटिया सीस पै कहा नचावौ हाथ।।
नंद महर के कान्हर तुम कौं कौन पतीजै।
भूले काहू ठौर दोष हमकौं नहिं दीजै।।
लै लकरी मुख पर धरी बँसुरी वाकौ नाउँ।
जा घर ऐसै पूत हैं उजरै ताकौ गाउँ।।
बसौ कि ऊजर होउ नहीं कछु चाह तुम्हारी।
तुम ऐसी लख चारि नंद घर गोबरहारी।।
इक लख मेरे सँग फिरै इक लख आवै जाइँ।
लख ठाढ़ी दरसन करै लख ठाढ़ी ललचाइँ।।
सुदर सुघर सुभाउ नारि बंसी लै दीन्ही।
मोहन चतुर सुजान साँमरै हँसि कर लीन्ही।।
लै बंसी ग्वालिनि मिली घूँघट बदन छपाइ।
‘सूरज’ हारी ग्वालिनी जीते जादवराइ।। 38 ।।

Next.png

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः