बहुतै दुख हरि सोइ गयौ री।
साँझहिं तैं लाग्यौ इहि बातहिं क्रम-क्रम बोधि लयौ री।
एक दिवस गयौ गाइ चरावन ग्वालनि संग सबारै।
अब तो सोइ रह्यौ है कहि कै, प्रातहि कहा बिचारै।
यह तो सब बलरामहिं लागै, सँग लै गयो लिवाइ।
सूर नंद यह कहत महरि सौं, आवन दै फिरि धाइ।।421।।