विरह-पदावली -सूरदास
राग गौरी (सूरदास जी के शब्दों में श्रीराधा कह रही हैं- सखी!) वह दिन भी ऐसा ही था; यह समय (भी) वही है, जब मोहन मेरे आँगन (द्वार पर) से होकर जाते थे। बचपन से प्रेम होने के कारण निरन्तर (सर्वदा उन्हीं की) धुन लगी रहती थी, (उस समय) नन्दनन्दन के मुख से भी ‘राधा, राधा’ यही रट लगी रहती थी। वे मोहन हाथ में वंशी लेकर मुझे (बजाना) सिखलाते थे और स्वयं गौरी राग गाते थे। उन प्यारे श्यामसुन्दर-रूपी चन्द्रमा के छोड़कर चले जाने के बाद वह आनन्द फिर कभी नहीं मिला। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
संबंधित लेख
पद संख्या | पद का नाम |