टीका टिप्पणी और संदर्भ
- ↑ इसके पहले ‘मोर मुकट मकराकृत कुंडल, अरुण तिलक दिये भाल ।’ पंक्ति भी कहीं-कहीं मिलती है।
- ↑ बसो = छाये रहो। सूरति = स्वरूप। बने = शोभा दे रहे हैं। सुधारस = अमृत जैसा माधुर्य उत्पन्न करने वाली। राजित = शोभित है। वैजन्ती माल = वैजन्ती नाम की माला जिसे भगवान् विष्णु धारण करते हैं। छुद्र घटिका = घुंघरूदार करधनी। कटितट = कटि प्रदेश वा कमर में। सबद = शब्द, ध्वनि। रसाल = मधुर। भक्तवछल = भक्तवत्सल वा भक्तों को प्यार करने वाले विशेष- तुलना के लिये देखिए ‘सूरसागर’ ( नवलकिशोर प्रेस, लखनऊ, संस्करण सन् 1889 ई. ) में दिया हुआ निम्नलिखित पद:- ‘बसे मेरे नयननि में नँदलाल। साँवरि सूरति माधुरी मूरति, राजिव नयन विसाल। मोर मुकुट मकराकृत कुण्डल, चरण तिलक दिये भाल। शंख चक्र गदपद्म विराजत, कौस्तुभ मणि वनमाल। बाजूबन्द जरह के भूषण, नूपुर शब्द रसाल। दास गोपाल मदन मोहन पिय, भक्तन के प्रतिपाल।।’’ ( पृष्ठ 189 ) बिहारी लाल के प्रसिद्ध दोहे- ‘सीस मुकुट, कटि काछनी, कर मुरली उर माल। यहि बानिक मो मन बसौ, सदा बिहारीलाल।।’’ का भी भाव प्रायः इस पद के ही समान है।
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