बसन हरे सब कदम चढ़ाए -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग बिलावल


बसन हरे सब कदम चढ़ाए।
सोरह सहस गोप-कन्यनि के, अंग-अभूषन स-हित चुराए।।
नीलांबर, पाटंबर, सारी, सेत पीत चुनरी, अरुनाए।
अति बिस्तार नीप तरु तामैं, लै-लै जहाँ-तहाँ लटकाए।।
मनि-आभरन डार डारनि प्रति, देखत छबि मनहीं अँटकाए।
सूर, स्याम जुवतिनि ब्रत पूरन, कौ फल डारनि कदम फराए।।784।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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