बसन हरे सब कदम चढ़ाए।
सोरह सहस गोप-कन्यनि के, अंग-अभूषन स-हित चुराए।।
नीलांबर, पाटंबर, सारी, सेत पीत चुनरी, अरुनाए।
अति बिस्तार नीप तरु तामैं, लै-लै जहाँ-तहाँ लटकाए।।
मनि-आभरन डार डारनि प्रति, देखत छबि मनहीं अँटकाए।
सूर, स्याम जुवतिनि ब्रत पूरन, कौ फल डारनि कदम फराए।।784।।