बल मोहन बन तैं दोउ आए।
जननि जसोदा मातु रोहिनी, हरषित कंठ लगाए।
काहै आजु अवार लगाई, कमल बदन कुम्हिलाए।
भूखे भए आजु दोउ भैया, करन कलेउ न पाए।
देखहु जाइ कहा जेवन कियौ, रोहिनि तुरत पठाई।
मैं अन्हवाए देति टुहुँनि कौं, तुम अति करो चँड़ाई।
लकुट लियौ, मुरली कर लीन्हीं हलधर दियौ विषान।
नीलांबर पीताबर लीन्हे सैंति धरति करि प्रान।
मुकुट उतारि धरयौ लै मंदिर पोंछति है अँग-धातु।
अरु वनमाल उतारति गर तैं सूर स्याम की मातु।।511।।