बरसत आनँद रस कौ मेह -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

प्रेम तत्त्व एवं गोपी प्रेम का महत्त्व

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राग मल्हार - तीन ताल


 
बरसत आनँद-रस कौ मेह।
स्यामा-स्याम दुहुन कौ बिगसित दिव्य मधुर रस नेह॥
सरस रहत सुचि दैन्य-भाव तैं कबहुँ न उपजत तेह।
निजसुख-त्याग परस्पर के हित, सब सुख साधन येह॥
भाव रहत नित बस्यौ रसालय, रस नित भाव-सुगेह।
नित नव-नव आनंद उदय, नहिं रहत नैक दुख-खेह॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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