बरषि-बरषि हहरे सब बादर।
ब्रज के लोगनि धोइ बहावहु इंद्र हमहिं कह्यौ आदर।।
कहा जाइ कैहैं प्रभु आगैं, करिहैं बहुत निरादर।
हम बरसत परबत जल सोखत, ब्रजबासी सब सादर।।
पुनि रिस करत, प्रलय-जल बरसत, कहत भए सब कादर।
सूर गाइ गोसुत सब राखौ, गिरिवर धरि ब्रज-आदर।।879।।