बनावत रास-मंडल प्यारौ।
मुकुट की लटक, झलक कुंडल की, निरतत नंद-दुलारौ।।
उर बनमाल सोह सुंदर वर, गोपिनि कैं संग गावैं।
लेत उपज नागर नागरि संग, बिच-विच तान सुनावै।।
बंसीबट-तट रास रच्यौ, है, सब गोपिनि सुखकारौ।
सूरदास प्रभु तुम्हरे मिलन सौं, भक्तनि प्रान अधारौ।।1143।।