बन असोक मैं जनक-सुता कों -सूरदास

सूरसागर

नवम स्कन्ध

Prev.png
राग सारंग
सीता का अशोक-वन-वास


 
बन असोक मैं जनक-सुता कों रावन राख्यौ जाइ।
भूखऽरु प्यास, नींद नहिं आवै, गई बहुत मुरझाइ।
रखवारी कौं बहुत निसाचरि, दीन्हीं तुरत पठाइ।
सूरदास सीता तिन्ह निरखत, मनहीं मन पछिताइ॥61॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः