बतिअनि सब कोऊ समुझावै -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग घनाश्री


बतिअनि सब कोऊ समुझावै।
ऐसौ कोउ नाहिं है प्रीतम, लै ब्रजनाथ मिलावै।।
आयौ दूत कपट कौ वासी, निरगुन ज्ञान बतावै।
सखा हमारे स्याम मनोहर, नैननि भरि न दिखावै।।
ज्ञान ध्यान कौ मरम न जानै, चतुरहिं चतुर कहावै।
'सूरदास' सबही काहू कौ, अपनौ ही हित भावै।।4016।।

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