बड़ौ देवता कान्ह पुजायौ। ग्वाल गोप हँसि अंकम लायौ।।
कान्ह धन्य, धनि जसुमति जायौ। ब्रज धनि-धनि तुम तैं कहवायौ।।
धन्य नंद निजी तुम सुत पायौ। धनि-धनि देव प्रगट दरसायौ।।
मेटि इंद्र-पूजा, गिरि पूज्यौ। परसन हमहिं सदा प्रभु हूज्यौ।।
कहा इंद्र बपुरौ किहिं लायक। गिरि देवता सबहि के नायक।।
सूरदास प्रभु के गुन ऐसे। भक्तनि बस दुष्टतनि कौं नैसे।।921।।