बड़े घर ताली लागी रे -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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अविनाशी प्रियतम


राग पीलू बरवा


बड़े घर ताली लागी रे, म्‍हाराँ मन री उणारथ भागी रे ।।टेक।।
छीलरिये म्‍हाँरो चित्त नहीं रे, डाबरिये कुण जाव ।
गंगा जमना सूँ काम नहीं रे, मैं ता जाइ मिलूं दरियाव ।
हालयाँ मोलयाँ सूँ काम नहीं रे, सीख नहीं सिरदार ।
कामदाराँ सूँ काम नहीं रे, मैं तो जाब करूँ दरबार ।
काच कथीर सूँ काम नहीं रे,. लोहा चढ़े सिर भार ।
सोना रूपा सूँ काम नहीं रे, म्‍हाँरे हीराँ रो बौपार ।
भाग हमारो जागियोरे, भयो सँमद सूँ सीर ।
इम्रित प्‍याला छांडि कै, कुण पीवै कड़वो नीर ।
पीया को प्रभु परचो दीन्‍हौ, दियारे खजीना पूर ।
मीराँ के प्रभु गिरधर नागर, धणी मिल्‍या छै हजूर ।।21।।[1]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. ताली लगी = सम्बन्ध हो गया, लगन लग गई। म्हाँरा = हमारे, मेरे। मनरी = मन की। उणारथ = लालसा, कामना। भागी = दूर हो गई। छीलरिये = छीछर तालाब, छिछला छोटा गड्ढा व तलैया पर। म्हाँरो = हमारा, मेरा। चित्त नहीं = चित्त नहीं चढ़ता। डाबरिये = बरसाती पानी से भरे छोटे गड्ढे पर। कुणजाव = कौन जावे। दरियाव = समुद्र। ( देखो - हरिसागर जानि बीसरे, छीलर देखि अनन्त ) कबीर। हाल्याँ मोल्याँ = हाली मुहाली, नौकर चाकर। सीख = नसीहत, परामर्श। सिरदार = सरदार, सामंत। कामदाराँ = प्रबंधकों वा अधिकारियों। सूँ = से। जाब = जवाब। दरबार = दरबार में जाकर स्वयं मालिक से ही। कथीर = राँगा। काँच = शीश। हीरां रो व्यौपार = हीरों का व्यापार। सीर = सम्बन्ध वा मेल। इम्रित = अमृत। झड़को = खारा। पीया = पीया नामक भक्त। परचो दीन्हों = परिचय दिया, चमत्कार दिखलाया। खजीन = खज़ाना। धणी = पति, स्वामी। मिल्याछै = मिला है। हजूर = हुजूर, प्रत्यक्ष वा स्वयं वही।

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