विरह-पदावली -सूरदास
राग कल्यान (सूरदास जी के शब्दों में कोई गोपी कह रही है-) सखी! श्यामसुन्दर का वियोग होने से रात में नींद आना (भी) बंद हो गया। वन में कोकिल, मयूर और पुष्पों का मधु पीने वाले भौंरे हैं। उन्होंने अपने शब्दों से मुझे व्याकुल कर दिया है। वह जो अपने पास में (मोहन रूप) सुख और सम्पत्ति की मूर्ति थी, उस पर मेरे पापों की दृष्टि पड़ गयी (मेरे पापों के फल से वह दूर चली गयी)। इससे सुन सखी! आँखों के जल से भीगती मेरी (वह) शय्या सदा गीली रहती है। (श्याम ने लौटने का जो समय दिया है, उस) अवधि के आधार से (किसी प्रकार) प्राण (देह में) टिके हुए हैं। पर इन (कोकिल, मयूरादि) सबों ने मिलकर (मुझे वध-दुःख देने का) कठोर निश्चय कर लिया है। अतः स्वामी के अमृतमय दर्शन के बिना पूरे शरीर से वियोग में लीन हो गयी हूँ-डूब गयी हूँ। |
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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