फिरत बननि बृंदाबन, बंसीबट, सँकेत बट
नागर कटि काछे, खौरि केसरि की किए।
पीत बसन चँदन तिलक, मोर-मुकुट कुँडल-झलक
स्याम-घन-सुरंग-छलक, यह छबि तन लिए।
तनु त्रिभंग, सुभग अंग, निरखि लजत अति अनंग
ग्वाल-बाल लिए संग, प्रमुदित सब हिए।
सूर स्याम अति सुजान, मुरली-धुनि करत गान
ब्रज-जन-मन कौं महान, संतत सुख दिए।।460।।