- महाभारत द्रोण पर्व मेंं संशप्तकवध पर्व के अंतर्गत तेईसवें अध्याय मेंं 'धृतराष्ट्र के पूछने पर संजय उन्हें पांडव सेना के महारथियों के रथ, घोड़े, ध्वज तथा धनुषों का वर्णन' करते हैं, जो इस प्रकार है-[1]
विषय सूची
संजय द्वारा धृतराष्ट्र से पांडव सेना के महारथियों के रथ, घोड़े, ध्वज तथा धनुषों का वर्णन करना
धृतराष्ट्र ने पूछा– संजय! क्रोध में भरे हुए भीमसेन आदि जो योद्धा द्रोणाचार्य पर चढ़ाई कर रहे थे, उन सबके रथों के[2] चिह्न कैसे थे? यह मुझे बताओ। संजय कहते है– राजन! रीछ के समान रंग वाले घोड़ों से जुते हुए रथ पर बैठकर भीमसेन को आते देख चाँदी के समान श्वेत घोड़ों वाले शूरवीर सात्यकि भी लौट पड़े। सारंग[3] के समान[4] रंग के घोड़ों से युक्त युधामन्यु, स्वयं ही अपने घोड़ों को शीघ्रतापूर्वक हाँकता हुआ द्रोणाचार्य के रथ की ओर लौट पड़ा। वह दुर्जय वीर क्रोध में भरा हुआ था। पांचालराजकुमार धृष्टद्युम्न कबूतर[5] के समान[6] रंग वाले सुवर्णभूषित एवं अत्यन्त वेगशाली घोड़ों के द्वारा लौट आया। नियमपूर्वक व्रत का पालन करने वाला क्षत्रधर्मा अपने पिता धृष्टद्युम्न की रक्षा और उनके अभीष्ट मनोरथ की उत्तम सिद्धि चाहता हुआ लाल रंग के घोड़ों से युक्त रथ पर आरूढ़ हो लौट आया।
शिखण्डी का पुत्र ऋक्षदेव, कमलपत्र के समान रंग तथा निर्मल नेत्रों वाले सजे सजाये घोड़ों को स्वयं ही शीघ्रतापूर्वक हाँकता हुआ वहाँ आया। तोते की पाँख के समान रोम वाले दर्शनीय काम्बोज[7] देशीय घोड़े नकुल को वहन करते हुए बड़ी शीघ्रता के साथ आपके सैनिकों की ओर दौड़े। भरतनन्दन! दुर्धर्ष युद्ध का संकल्प लेकर क्रोध में भरे हुए उत्तमौजा को मेघ के समान श्याम वर्ण वाले घोड़े युद्धस्थल की ओर ले जा रहे थे।
इसी प्रकार अस्त्र–शस्त्रों से सम्पन्न सहदेव को तीतर के समान चितकबरे रंग वाले तथा वायु के समान वेगशाली घोड़े उस भयंकर युद्ध में ले गये। हाथी के दाँत के समान सफेद रंग, काली पूँछ तथा वायु के समान तीव्र एवं भयंकर वेग वाले घोड़े नरश्रेष्ठ राजा युधिष्ठिर को रणक्षेत्र में ले गये। सोने के उत्तम आवरणों से ढके हुए, वायु के समान वेगशाली घोड़ों द्वारा सारी सेनाओं ने महाराज युधिष्ठिर को सब ओर से घेर रखा था। राजा युधिष्ठिर के पीछे पांचालराज द्रुपद चल रहे थे। उनका छत्र सोने का बना हुआ था। वे भी समस्त सैनिकों द्वारा सुरक्षित थे। वे 'ललाम'[8]और 'हरि'[9] संज्ञा वाले घोड़ों से, जो सब प्रकार के शब्दों को सुनकर उन्हें सहन करने में समर्थ थे, सुशोभित हो रहे थे। उस युद्धस्थल में समस्त राजाओं के मध्य भाग में राजा द्रुपद निर्भय होकर द्रोणाचार्य का सामना करने के लिये आये। द्रुपद के पीछे सम्पूर्ण महारथियों के साथ राजा विराट शीघ्रतापूर्वक चल रहे थे। केकय राजकुमार, शिखण्डी तथा धृष्टकेतु– ये अपनी-अपनी सेनाओं से घिरकर मत्स्यराज विराट के पीछे चल रहे थे। शत्रुसूदन मत्स्यराज विराट के रथ को जो वहन करते हुए शोभा पा रहे थे, वे उत्तम घोड़े पाडर के फूलों के समान लाल और सफेद रंग वाले थे। हल्दी के समान पीले रंग वाले तथा सुवर्णमय माला धारण करने वाले वेगशाली घोड़े विराटराज के पुत्र को शीघ्रतापूर्वक रणभूमि की ओर ले जा रहे थे।
पाँच भाई केकय-राजकुमार इन्द्रगोप (वीरबहूटी) के समान रंगवाले घोड़ों द्वारा रणभूमि में लौट रहे थे। उन पाँचों भाईयों की कान्ति सुवर्ण के समान थी तथा वे सब के सब लाल रंग की ध्वजा पताका धारण किये हुए थे। सुवर्ण की मालाओं से विभूषित वे सभी युद्धविशारद शूरवीर मेघों के समान बाणवर्षा करते हुए कवच आदि से सुसज्जित दिखायी देते थे। अमित तेजस्वी पांचालराजकुमार शिखण्डी को तुम्बुरु के दिये हुए मिट्टी के कच्चे बर्तन के समान रंगवाले दिव्य अश्व वहन करते थे।[1] पांचालों के जो बारह हजार महारथी युद्ध में लड़ रहे थे, उनमे से छ: हजार इस समय शिखण्डी के पीछे चलते थे। आर्य! पुरुषसिंह शिशुपाल के पुत्र को सांरग के समान चितकबरे अश्व खेल करते हुए से वहन कर रहे थे। चेदि देश का श्रेष्ठ राजा अत्यन्त बलवान दुर्जय वीर धृष्टकेतु काम्बोजदेशीय चितकबरे घोड़ों द्वारा युद्धभूमि की ओर लौट रहा था। केकय देश के सुकुमार राजकुमार बृहत्क्षत्र को पुआल के धूएँ के समान उज्ज्वलनील वर्ण वाले सिन्धुदेशीय[10]अच्छी जाति के घोड़ों ने शीघ्रतापूर्वक रणभूमि में पहुँचाया।[11]
शिखण्डी के शूरवीर पुत्र ऋक्षदेव को पद्म[12] के समान वर्ण और निर्मल नेत्र वाले बाह्लिक देश[13] के सजे सजाये घोड़ों ने रणभूमि में पहुँचाया। सोने के आभूषणों तथा कवचों से सुशोभित रेशम के समान श्वेतपीत रोम वाले सहनशील घोड़ों ने शत्रुओं का दमन करने वाले सेनाबिन्दु को युद्धभूमि में पहुँचाया। क्रौंचवर्ण[14] के उत्तम घोड़ों ने काशिराज अभिभू के सुकुमार एवं युवा पुत्र को, जो महारथी वीर था, युद्धभूमि में पहुँचाया। राजन! मन के समान वेगशाली तथा काली गर्दन वाले श्वेतवर्ण के घोड़े, जो सारथि की आज्ञा मानने वाले थे, राजकुमार प्रतिविन्ध्य को रण में ले गये।
कुन्तीकुमार भीमसेन ने जिस सौम्यरूप वाले पुत्र सुतसोम को जन्म दिया था, उसे उड़द के फूल की भाँति सफेद और पीले रंग वाले घोड़ों ने रणक्षेत्र में पहुँचाया। कौरवों के उदयेन्दु नामक पुर (इन्द्रप्रस्थ) में सोमाभिषव[15] के दिन सहस्त्रों चन्द्रमाओं के समान कान्तिमान वह बालक उत्पन्न हुआ था, इसलिये उनका नाम सुतसोम रखा गया था। नकुल के स्पृहणीय पुत्र शतानीक को शाल पुष्प के समान रक्त-पीत वर्ण वाले और बाल सूर्य के समान कान्तिमान अश्व रणभूमि में ले गये। मोर की गर्दन के समान नीले रंग वाले घोड़ों ने सुनहरी रस्सियों आबद्ध हो द्रौपदीपुत्र सहदेवकुमार पुरुषसिंह श्रुतकर्मा को युद्धभूमि में पहुँचाया। इसी प्रकार युद्ध में अर्जुन की समानता करने वाले, शास्त्र-ज्ञान के भण्डार द्रौपदीनन्दन अर्जुनकुमार श्रुतकीर्ति को नीलकण्ठ की पाँख के समान रंग वाले उत्तम घोड़े रणक्षेत्र में ले गये। जिसे युद्ध में श्रीकृष्ण और अर्जुन से ड्योढ़ा बताया गया है, उस सुभद्राकुमार अभिमन्यु को रणक्षेत्र में कपिल वर्ण वाले घोड़े ले गये। आपके पुत्रों में से जो एक युयुत्सु पाण्डवों की शरण में जा चुके हैं, उन्हें पुआल के डंठल के समान रंग वाले, विशालकाय एवं बृहद अश्वों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। उस भयंकर युद्ध में काले रंग के सजे-सजाये घोड़ों ने वृद्धक्षेम के वेगशाली पुत्र को युद्धभूमि में पहुँचाया। सुचित्त के पुत्र कुमारसत्यधृति को सुवर्णमय विचित्र कवचों से सुसज्जित और काले रंग के पैरों वाले, सारथि की इच्छा के अनुसार चलने वाले उत्तम घोड़ों ने युद्धक्षेत्र में उपस्थित किया। सुनहरी पीठ से युक्त, रेशम के समान रोम वाले, सुवर्णमालाधारी तथा सहनशक्ति से सम्पन्न घोड़ों ने श्रेणिमान को युद्ध में पहुँचाया। सुवर्णमाला धारण करने वाले शूरवीर और सुवर्ण रंग के पृष्ठभाग वाले सजे-सजाये घोड़े स्पृहणीय नरश्रेष्ठ काशिराज को रणभूमि में ले गये। अस्त्रों के ज्ञान में, धनुर्वेद में तथा ब्रह्मवेद में भी पारंगत पूर्वोक्त सत्यधृति को अरुण वर्ण के अश्वों ने युद्धक्षेत्र में उपस्थित किया।
जो पांचालों के सेनापति हैं, जिन्होंने द्रोणाचार्य को अपना भाग निश्चित कर रखा था, उन धृष्टद्युम्न को कबूतर के समान रंग वाले घोड़ों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। उनके पीछे सुचित्त के पुत्र युद्धदुर्मद सत्यधृति, श्रेणिमान, वसुदान[16] ने और काशिराज के पुत्र अभिभू चल रहे थे। ये सबके सब यम और कुबेर के समान पराक्रमी योद्धा वेगशाली, सुवर्णमालाओं से अलंकृत एवं सुशिक्षित, उत्तम काबुली घोड़ों द्वारा शत्रुओं को भयभीत करते हुए धृष्टद्युम्न का अनुसरण कर रहे थे।[11] इनके सिवा छ: हजार काम्बोजदेशीय प्रभद्रक नाम वाले योद्धा हथियार उठाये, भाँति-भाँति के श्रेष्ठ घोड़ों से जुते हुए सुनहरे रंग के रथ और ध्वजा से सम्पन्न हो धनुष फैलाये अपने बाण-समूहों द्वारा शत्रुओं को भय से कम्पित करते हुए सब समान रूप से मृत्यु को स्वीकार करने के लिये उद्यत हो धृष्टद्युम्न के पीछे-पीछे जा रहे थे।[17]
नेवले तथा रेशम के समान रंग वाले[18] उत्तम अश्व, जो सुन्दर सुवर्ण की माला से विभूषित तथा प्रसन्न चित्त वाले थे, चेकितान को युद्धस्थल में ले गये। अर्जुन के मामा पुरूजित कुन्तिभोज इन्द्रधनुष के समान रंग वाले उत्तम श्रेणी के सुन्दर अश्वों द्वारा उस युद्धभूमि में आये। राजा रोचमान को ताराओं से चित्रित अन्तरिक्ष के समान चितकबरे घोड़ों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। जरासंध के पुत्र सहदेव को काले पैरों वाले चितकबरे श्रेष्ठ घोड़े, जो सोने की जाली से विभूषित थे, रणभूमि में ले गये। कमल के नाल की भाँति श्वेतवर्ण वाले और श्येन पक्षी के समान वेगशाली उत्तम एवं विचित्र अश्व सुदामा को लेकर रणक्षेत्र में उपस्थित हुए। जिनके रंग खरगोश के समान और लोहित हैं तथा जिनके अंगों में श्वेतपीत रोमावलियाँ सुशोभित होती हैं, वे घोड़े उन गोपति पुत्र पांचालराजकुमार सिंहसेन[19] को युद्धस्थल में ले गये थे।
पांचालों में विख्यात जो पुरुषसिंह जनमेजय हैं, उनके उत्तम घोड़े सरसों के फूलों के समान पीले रंग के थे। उड़द के समान रंग वाले, स्वर्णमाला विभूषित, दधि के समान श्वेत पृष्ठभाग से युक्त और चितकबरे मुख वाले वेगशाली विशाल अश्व पांचालराजकुमार को संग्रामभूमि में शीघ्रतापूर्वक ले गये। शूर, सुन्दर मस्तक वाले, सरकण्डे के पोरूओं के समान श्वेत-गौर तथा कमल के केसर की भाँति कान्तिमान घोड़े दण्डधार को रणभूमि में ले गये। गदहे के समान मलिन एवं अरुण वर्ण वाले, पृष्ठभाग में चूहें के समान श्याम-मलिन कान्ति धारण करने वाले तथा विनीत घोड़े व्याघ्रदत्त को युद्ध में उछलते-कूदते हुए-से ले गये। काले मस्तक वाले, विचित्र वर्ण तथा विचित्र मालाओं से विभूषित घोड़े पांचालदेशीय पुरुषसिंह सुधन्वा को लेकर रणभूमि में उपस्थित हुए। इन्द्र के वज्र के समान जिनका स्पर्श अत्यन्त दु:सह है, जो वीरबहूटी के समान लाल रंग वाले हैं, जिनके शरीर में विचित्र चिह्न शोभा पाते हैं तथा जो देखने में भी अद्भुत हैं, वे घोड़े चित्रायुध को युद्धभूमि में ले गये। सुवर्ण की माला धारण किये चक्रवाक के उदर के समान कुछ-कुछ श्वेतवर्ण वाले घोड़े कोसलनरेश के पुत्र सुक्षत्र को युद्ध में ले गये।
चितकबरे, विशालकाय, वश में किये हुए, सुवर्ण की माला से विभूषित तथा ऊँचे कद वाले सुन्दर अश्वों ने क्षेमकुमार सत्यधृति को युद्धभूमि में पहुँचाया। जिनके ध्वज , कवच और धनुष ये सब कुछ एक ही रंग के थे, वे राजा शुक्ल शुक्लवर्ण के अश्वों द्वारा युद्ध के मैदान में लौट आये। समुद्रसेन के पुत्र, भयानक तेज से युक्त चन्द्रसेन को चन्द्रमा के समान सफेद रंग वाले समुद्री घोड़ों ने युद्धभूमि में पहुँचाया। नीलकमल के समान रंग वाले, सुवर्णमय आभूषणों से विभूषित विचित्र मालाओं वाले अश्व विचित्र रथ से युक्त राजा शैब्य को युद्धस्थल में ले गये। जिनके रंग केराव के फूल के समान हैं, जिनकी रोमराजि श्वेतलोहित वर्ण की है, ऐसे श्रेष्ठ घोड़ों ने रणदुर्मद रथसेन को संग्रामभूमि में पहुँचाना। जिन्हें सब मनुष्यों से अधिक शूरवीर नरेश कहा जाता है, जो चोरों और लुटेरों का नाश करने वाले हैं, उन समुद्रप्रान्त के अधिपति को तोते के समान रंग वाले घोड़े रणभूमि में ले गये।[17] जिनके माला, कवच, अस्त्र–शस्त्र और ध्वज सब कुछ विचित्र हैं, उन राजा चित्रायुध[20] को पलाश के फूलों के समान लाल रंग वाले उत्तम घोड़े संग्राम में ले गये। जिनके ध्वज, कवच और धनुष सब एक रंग के थे, वे राजा नील अपने रथ में जुते हुए नील रंग के घोड़ों द्वारा रणक्षेत्र में उपस्थित हुए। जिनके रथ का आवरण, रथ तथा धनुष नाना प्रकार के रत्नों से जटित एवं अनेक रूप वाले थे, जिनके घोड़े, ध्वजा और पताकाएँ भी विचित्र प्रकार की थी, वे राजा चित्र चितकबरे घोड़ों द्वारा युद्ध के मैदान में आये। जिनके रंग कमलपत्र के समान थे, वे उत्तम घोड़े रोचमान के पुत्र हेमवर्ण को रणभूमि में ले गये। युद्ध करने में समर्थ, कल्याणमय कार्य करने वाले, सरकण्डे के समान श्वेतगौर पीठ वाले, श्वेत अण्डकोशधारी तथा मुर्गी के अण्डे के समान सफेद घोड़े दण्डकेतु को युद्धस्थल में ले गये।[21]>
भगवान श्रीकृष्ण के हाथों से जब युद्ध में पाण्ड्य देश के राजा तथा वर्तमान नरेश के पिता मारे गये, पाण्ड्य राजाधानी का फाटक तोड़-फोड दिया गया और सारे बन्धु-बान्धव भाग गये, उस समय जिसने भीष्म, द्रोण, परशुराम तथा कृपाचार्य से अस्त्र-विद्या सीखकर उसने रुक्मी ,कर्ण, अर्जुन और श्रीकृष्ण की समानता प्राप्त कर ली; फिर द्वारका को नष्ट करने और सारी पृथ्वी पर विजय पाने का संकल्प किया; यह देख विद्वान सुहृदों ने हित की कामना रखकर जिसे वैसा दु:साहस करने से रोक दिया और अब जो वैर भाव को छोड़कर अपने राज्य का शासन कर रहा है और जिसके रथ पर सागर के चिह्न से युक्त ध्वजा फहराती है, पराक्रमरूपी धन का आश्रय लेने वाले उस बलवान राजा पाण्ड्य ने अपने दिव्य धनुष की टंकार करते हुए वैदूर्यमणि की जाली से आच्छादित तथा चन्द्रकिरणों के समान श्वेत घोड़ों द्वारा द्रोणाचार्य पर धावा किया। वासक पुष्पों के समान रंग वाले घोड़े राजा पाण्ड्य के पीछे चलने वाले एक लाख चालीस हजार श्रेष्ठ रथों का भार वहन कर रहे थे। अनेक प्रकार के रंग-रूप से युक्त विभिन्न आकृति और मुख वाले घोड़े रथ के पहिये के चिह्न से युक्त ध्वजा वाले वीर घटोत्कच को रणभूमि में ले गये। जो एकत्र हुए सम्पूर्ण भरतवंशियों के मतों का परित्याग करके अपने सम्पूर्ण मनोरथों को छोड़कर केवल भक्तिभाव से युधिष्ठिर के पक्ष में चले गये, उन लाल नेत्र और विशाल भुजा वाले राजा वृहन्त को, जो सुवर्णमय रथ पर बैठे हुए थे, अरट्टदेश के महापराक्रमी, विशालकाय और सुनहरे रंग वाले घोड़े रणभूमि में ले गये।
धर्म के ज्ञाता तथा सेना के मध्य-भाग मे विद्यमान नृपश्रेष्ठ युधिष्ठिर को चारों ओर से घेरकर सुवर्ण के समान रंग वाले श्रेष्ठ घोड़े उनके साथ-साथ चल रहे थे। अन्य भिन्न–भिन्न प्रकार के वर्णों से युक्त सुन्दर अश्वों का आश्रय ले प्रभद्रक नाम वाले देवताओं जैसे रूपवान बहुसंख्यक प्रभद्रकगण युद्ध के लिये लौट पड़े। राजेन्द्र! भीमसेन सहित पूरी सावधानी से युद्ध के लिये उद्यत हुए ये सुवर्णमय ध्वज वाले राजा लोग इन्द्र सहित देवताओं के समान दृष्टिगोचर होते थे। वहाँ एकत्र हुए उन सब राजाओं की अपेक्षा धृष्टद्युम्न की अधिक शोभा हो रही थी और समस्त सेनाओं से ऊपर उठकर भरद्वाजनन्दन द्रोणाचार्य सुशोभित हो रहे थे। महाराज! काले मृगचर्म और कमण्डलु के चिह्न से युक्त उनका सुवर्णमय सुन्दर ध्वज अत्यन्त शोभा पा रहा था। वैदूर्यमणिमय नेत्रों से सुशोभित महासिंह के चिह्न से युक्त भीमसेन की चमकीली ध्वजा फहराती हुई बड़ी शोभा पा रही थी। उसे मैंने देखा था।[21] महातेजस्वी कुरुराज पाण्डुनन्दन युधिष्ठिर की सुवर्णमयी ध्वजा को मैंने चन्द्रमा तथा ग्रह गणों के चिह्न से सुशोभित देखा है। इस ध्वजा में नन्द-उपनन्द नामक दो विशाल एवं दिव्य मृदंग लगे हुए हैं। वे यन्त्र के द्वारा बिना बजाये बजते हैं और सुन्दर शब्द का विस्तार करके सबका हर्ष बढ़ाते हैं। नकुल की विशाल ध्वजा शरभ के चिह्न से युक्त तथा पृष्ठभाग में सुवर्णमयी है। हमने देखा, वह अत्यन्त भयंकर रूप से उनके रथ पर फहराती और सबको भयभीत करती थी। सहदेव की ध्वजा में घटा और पताका के साथ चाँदी के बने सुन्दर हंस का चिह्न था। वह दुर्धर्ष ध्वज शत्रुओं का शोक बढ़ाने वाला था। क्रमश: धर्म, वायु, इन्द्र तथा महात्मा अश्विनीकुमारों की प्रतिमाएँ पाँचों द्रौपदीपुत्रों के ध्वजों की शोभा बढ़ाती थीं। राजन! कुमार अभिमन्यु के रथ का श्रेष्ठ ध्वज तपाये हुए सुवर्ण से निर्मित होने के कारण अत्यन्त प्रकाशमान था। उसमें सुवर्णमय शांर्गपक्षी का चिह्न था। राजेन्द्र! राक्षस घटोत्कच की ध्वजा में गीध शोभा पाता था। पूर्वकाल में रावण के रथ की भाँति उसके रथ में भी इच्छानुसार चलने वाले घोड़े जुते हुए थे।
राजन! धर्मराज युधिष्ठिर के पास महेन्द्र का दिया हुआ दिव्य धनुष शोभा पाता था। इसी प्रकार भीमसेन के पास वायु देवता का दिया हुआ दिव्य धनुष था। तीनों लोकों की रक्षा के लिये ब्रह्माजी ने जिस आयुध की सृष्टि की थी, वह कभी जीर्ण न होने वाला दिव्य गाण्डीव धनुष अर्जुन को प्राप्त हुआ था। नकुल को वैष्णव तथा सहदेव को अश्विनीकुमार-सम्बन्धी धनुष प्राप्त था तथा घटोत्कच के पास पौलस्त्य नामक भयानक दिव्य धनुष विद्यमान था। भरतनन्दन! पाँचों द्रौपदीपुत्रों के दिव्य धनुषरत्न क्रमश: रुद्र, अग्नि, कुबेर, यम तथा भगवान शंकर से सम्बन्ध रखने वाले थे। रोहिणीनन्दन बलराम ने जो रुद्र सम्बन्धी श्रेष्ठ धनुष प्राप्त किया था, उसे उन्होंने संतुष्ट होकर महामना सुभद्राकुमार अभिमन्यु को दे दिया था। ये तथा और भी बहुत-सी राजाओं की सुवर्ण भूषित ध्वजाएँ वहाँ दिखायी देती थीं, जो शत्रुओं का शोक बढ़ाने वाली थीं। महाराज! उस समय वीर पुरुषों से भरी हुई द्रोणाचार्य की वह ध्वजाविशिष्ट सेना पट में अंकित किये हुए चित्र के समान प्रतीत होती थी। राजन! उस समय युद्धस्थल में द्रोणाचार्य पर आक्रमण करने वाले वीरों के नाम और गोत्र उसी प्रकार सुनायी पड़ते थे, जैसे स्वयंवर में सुने जाते हैं।[22]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
- ↑ 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 1-19
- ↑ घोड़े, ध्वजा आदि
- ↑ नीलकंठी टीका में अश्व शास्त्र के अनुसार घोड़ों के रंग और लक्षण आदि का परिचय दिया गया है। उसमें से कुछ आवश्यक बातें यहाँ यथास्थान उद्धृत की जाती हैं। सारंग सूचित करने वाला रंग इस प्रकार है-
सितनीलारुणो वर्ण: सारंग सदृशश्च स:। - ↑ सफेद, नीले और लाल
- ↑ कबूतर का रंग बताने वाला रंग यों मिलता है-
पारावतकपोताभ: सितनीलसमंवयात् - ↑ सफेद और नीले
- ↑ काम्बोज(काबुल) के घोड़ों का लक्षण-
महाललाटजघनस्कन्धवक्षोजवा: हया:।
दीर्घग्रीवायता ह्रस्वमुष्का: काम्बोज: स्मृता:॥
जिनके ललाट, जाँघें, कन्धे, छाती औए वेग महान होते हैं, गर्दन लम्बी और चौड़ी होती है और अण्डकोष बहुत छोटे होते हैं वे काबुली घोड़े माने गये हैं। - ↑ जिस घोड़े के ललाट के मध्य भाग में तारा के समान श्वेत चिह्न हो, उसके उस चिह्न का नाम ललाम है। उससे युक्त ललाम ही कहलाता है। यथा-
श्वेतं ललाटमध्यस्थं तारारूपं हयस्य यत्।
ललामं चापि तत्प्राहुर्ललामोअश्वस्तदंवित:॥ - ↑ 'हरि' का लक्षण इस प्रकार दिया गया है-
सकेशराणि रोमाणि सुवर्णाभानि यस्य तु।
हरि: स वर्णतोअश्वस्तु पीतकौशेयसंनिभय:॥
जिसकी गर्दन के बड़े-बड़े बाल और शरीर के रोएँ सुनहरे रंग के हो, जो रेशमी पीताम्बर के समान जान पड़ता हो, वह घोड़ा हरि कहलाता है। - ↑ सिन्धु देश के घोड़ों की गर्दन लम्बी, मूत्रेन्द्रिय मूँह तक पहुँचने वाली, आँखे बड़ी-बड़ी, कद ऊँचा तथा रोएँ सूक्ष्म होते हैं। सिन्धी घोड़े बड़े बलिष्ठ होते हैं जैसा कि बताया गया है-
दीर्घग्रीवा मुखालम्बमेहना: पृथुलोचना:।
महांतस्तनुरोमाणो बलिन: सैन्धवा हया:॥ - ↑ 11.0 11.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 20-42
- ↑ पद्मवर्ण का परिचय इस प्रकार दिया गया है
सितरक्तसमायोगात् पद्मवर्ण: प्रकीर्त्यते:।
सफेद और लाल रंग के सम्मिश्रण से जो रंग बनता है, वह पद्मवर्ण कहलाता है। - ↑ बाह्लिक देश के घोड़े भी प्राय: काबुली घोड़ों के समान ही होते हैं। उनमें विशेषता इतनी ही है कि उनका पीठभाग काम्बोजदेशीय घोड़ों की अपेक्षा बड़ा होता है।
जैसा कि निम्नांकित वचन से स्पष्ट है-
काम्बोजसमसंस्थाना बाह्लिजाताश्च वाजिन:।
विशेष पुनरेतेषां दीर्घपृष्ठांगतोच्यते॥ - ↑ जिनके रोएँ तथा केशर(गर्दन के बाल) सफेद होते हैं, त्वचा,गुह्यभाग, नेत्र, और खुर काले होते हैं, ऐसे घोडों को महर्षियों ने क्रौंचवर्ण का बताया है। यथा-
सितलोमकेसराढ्या: कृष्णत्वग्गुह्यलोचनोष्ठखुरा:
ये स्युर्मुनिभिर्वाहा निर्दिष्टा: क्रौंचवर्णास्ते॥ - ↑ सोमरस निकालने
- ↑ ये वसुदान 21। 55 में मारे गये वसुदान से भिन्न हैं। इन्हें कहीं-कहीं 'काश्य' बताया गया है। सम्भव है, ये ही काशिराज हों।
- ↑ 17.0 17.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 43-63
- ↑ पिंगल-गौर वर्ण के
- ↑ यद्यपि सिंहसेन और व्याघ्रदत्त के मारे जाने का वर्णन (16।37) में आ चुका है। तथापि यहाँ घोड़ों के वर्णन के प्रसंग में संजय ने सामान्यत: सबके घोड़ों का उल्लेख कर दिया है। मृत्यु से पहले वे दोनों वैसे ही घोड़ों पर आरुढ़ हो रणभूमि में पधारे थे।
- ↑ इन्हीं का वर्णन पहले श्लोक 56 में भी आ चुका है।
- ↑ 21.0 21.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 64-83
- ↑ महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 23 श्लोक 84-98
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| अर्जुन द्वारा वृषक और अचल का वध
| शकुनि की माया और अर्जुन द्वारा उसकी पराजय
| अर्जुन के भय से कौरव सेना का पलायन
| कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध
| अश्वत्थामा द्वारा राजा नील का वध
| भीमसेन का कौरव महारथियों के साथ संग्राम
| पांडवों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| अर्जुन और कर्ण का युद्ध
| कर्ण और सात्यकि का संग्राम
अभिमन्युवध पर्व
दुर्योधन का उपालम्भ तथा द्रोणाचार्य की प्रतिज्ञा
| अभिमन्यु वध के वृत्तान्त का संक्षेप में वर्णन
| संजय द्वारा अभिमन्यु की प्रशंसा
| द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह का निर्माण
| युधिष्ठिर और अभिमन्यु का संवाद
| चक्रव्यूह भेदन के लिए अभिमन्यु की प्रतिज्ञा
| अभिमन्यु द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार
| अभिमन्यु द्वारा अश्मकपुत्र का वध
| शल्य का मूर्छित होना और कौरव सेना का पलायन
| अभिमन्यु द्वारा शल्य के भाई का वध
| द्रोणाचार्य की रथसेना का पलायन
| द्रोणाचार्य द्वारा अभिमन्यु की प्रशंसा
| दुर्योधन के आदेश से दु:शासन का अभिमन्यु से युद्ध
| अभिमन्यु द्वारा दु:शासन और कर्ण की पराजय
| अभिमन्यु द्वारा कर्ण के भाई का वध
| अभिमन्यु द्वारा कौरव सेना का संहार
| जयद्रथ का पांडवों को चक्रव्यूह में प्रवेश करने से रोकना
| जयद्रथ का पांडवों के साथ युद्ध और व्यूहद्वार को रोक रखना
| अभिमन्यु द्वारा वसातीय आदि अनेक योद्धाओं का वध
| अभिमन्यु द्वारा सत्यश्रवा, रुक्मरथ और सैकड़ों राजकुमारों का वध
| अभिमन्यु द्वारा दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध
| अभिमन्यु द्वारा क्राथपुत्र का वध
| अभिमन्यु द्वारा वृन्दारक तथा बृहद्वल का वध
| अभिमन्यु द्वारा अश्वकेतु, भोज और कर्ण के मंत्री आदि का वध
| कौरव महारथियों द्वारा अभिमन्यु के धनुष और तलवार आदि का नाश
| कौरव महारथियों के सहयोग से अभिमन्यु का वध
| युधिष्ठिर द्वारा भागती हुई पांडव सेना को आश्वासन
| तेरहवें दिन के युद्ध की समाप्ति एवं रणभूमि का वर्णन
| युधिष्ठिर का विलाप
| युधिष्ठिर के पास व्यास का आगमन
| व्यास द्वारा मृत्यु की उत्पत्ति का प्रसंग आरम्भ करना
| शंकर और ब्रह्मा का संवाद
| मृत्यु की उत्पत्ति
| मृत्यु की घोर तपस्या
| ब्रह्मा द्वारा मृत्यु को वर की प्राप्ति
| नारद-अकम्पन संवाद का उपंसहार
| नारद की कृपा से राजा सृंजय को पुत्र की प्राप्ति
| दस्युओं द्वारा राजा सृंजय के पुत्र का वध
| नारद द्वारा सृंजय को मरुत्त का चरित्र सुनाना
| राजा सुहोत्र की दानशीलता
| राजा पौरव के अद्भुत दान का वृत्तान्त
| राजा शिबि के यज्ञ और दान की महत्ता
| भगवान श्रीराम का चरित्र
| राजा भगीरथ का चरित्र
| राजा दिलीप का उत्कर्ष
| राजा मान्धाता की महत्ता
| राजा ययाति का उपाख्यान
| राजा अम्बरीष का चरित्र
| राजा शशबिन्दु का चरित्र
| राजा गय का चरित्र
| राजा रन्तिदेव की महत्ता
| राजा भरत का चरित्र
| राजा पृथु का चरित्र
| परशुराम का चरित्र
| नारद द्वारा सृंजय के पुत्र को जीवित करना
| व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अन्तर्धान होना
प्रतिज्ञा पर्व
अभिमन्यु की मृत्यु के कारण अर्जुन का विषाद
| अभिमन्यु की मृत्यु पर अर्जुन का क्रोध
| युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन को अभिमन्युवध का वृत्तान्त सुनाना
| अर्जुन की जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा
| अर्जुन की प्रतिज्ञा से जयद्रथ का भय
| दुर्योधन और द्रोणाचार्य का जयद्रथ को आश्वासन
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को कौरवों के जयद्रथ की रक्षा विषयक उद्योग का समाचार बताना
| अर्जुन के वीरोचित वचन
| अशुभसूचक उत्पातों से कौरव सेना में भय
| श्रीकृष्ण का सुभद्रा को आश्वासन
| सुभद्रा का विलाप और श्रीकृष्ण द्वारा आश्वासन
| पांडव सैनिकों की अर्जुन के लिए शुभाशंसा
| अर्जुन की सफलता हेतु श्रीकृष्ण के दारुक से उत्साह भरे वचन
| अर्जुन का स्वप्न में श्रीकृष्ण के साथ शिव के समीप जाना
| अर्जुन और श्रीकृष्ण द्वारा शिव की स्तुति
| अर्जुन को स्वप्न में पुन: पाशुपतास्त्र की प्राप्ति
| युधिष्ठिर का ब्राह्मणों को दान देना
| युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण का पूजन
| अर्जुन की प्रतिज्ञा की सफलता हेतु युधिष्ठिर की श्रीकृष्ण से प्रार्थना
| जयद्रथ वध हेतु श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को आश्वासन
| युधिष्ठिर का अर्जुन को आशीर्वाद
| सात्यकि और श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन की रणयात्रा
| अर्जुन का सात्यकि को युधिष्ठिर की रक्षा का आदेश
जयद्रथवध पर्व
धृतराष्ट्र का विलाप
| संजय का धृतराष्ट्र को उपालम्भ
| द्रोणाचार्य द्वारा चक्रशकट व्यूह का निर्माण
| दुर्मर्षण का अर्जुन से लड़ने का उत्साह
| अर्जुन का रणभूमि में प्रवेश और शंखनाद
| अर्जुन द्वारा दुर्मर्षण की गजसेना का संहार
| अर्जुन से हताहत होकर दु:शासन का सेनासहित पलायन
| अर्जुन और द्रोणाचार्य का वार्तालाप तथा युद्ध
| अर्जुन का कौरव सैनिकों द्वारा प्रतिरोध
| अर्जुन का द्रोणाचार्य और कृतवर्मा से युद्ध
| श्रुतायुध का अपनी ही गदा से वध
| अर्जुन द्वारा सुदक्षिण का वध
| अर्जुन द्वारा श्रुतायु, अच्युतायु, नियतायु, दीर्घायु और अम्बष्ठ आदि का वध
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ
| अर्जुन से युद्ध हेतु द्रोणाचार्य का दुर्योधन के शरीर में दिव्य कवच बाँधना
| द्रोण और धृष्टद्युम्न का भीषण संग्राम
| उभय पक्ष के प्रमुख वीरों का संकुल युद्ध
| कौरव-पांडव सेना के प्रधान वीरों का द्वन्द्व युद्ध
| द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का युद्ध
| सात्यकि द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा
| द्रोणाचार्य और सात्यकि का अद्भुत युद्ध
| अर्जुन द्वारा तीव्र गति से कौरव सेना में प्रवेश
| अर्जुन द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध
| अर्जुन द्वारा अद्भुत जलाशय का निर्माण
| श्रीकृष्ण द्वारा अश्वपरिचर्या
| अर्जुन का शत्रुसेना पर आक्रमण और जयद्रथ की ओर बढ़ना
| श्रीकृष्ण और अर्जुन को आगे बढ़ा देख कौरव सैनिकों की निराशा
| जयद्रथ की रक्षा हेतु दुर्योधन का अर्जुन के समक्ष आना
| श्रीकृष्ण का अर्जुन की प्रशंसापूर्वक प्रोत्साहन देना
| अर्जुन और दुर्योधन का एक-दूसरे के सम्मुख आना
| दुर्योधन का अर्जुन को ललकारना
| दुर्योधन और अर्जुन का युद्ध
| अर्जुन द्वारा दुर्योधन की पराजय
| अर्जुन का कौरव महारथियों के साथ घोर युद्ध
| अर्जुन तथा कौरव महारथियों के ध्वजों का वर्णन
| अर्जुन का नौ कौरव महारथियों के साथ अकेले युद्ध
| द्रोणाचार्य की सेना का पांडव सेना से द्वन्द्व युद्ध
| युधिष्ठिर का द्रोणाचार्य से युद्ध और रणभूमि से पलायन
| क्षेमधूर्ति तथा वीरधन्वा का वध
| निरमित्र तथा व्याघ्रदत्त का वध और दुर्मुख तथा विकर्ण की पराजय
| द्रौपदी के पुत्रों द्वारा शल का वध
| भीमसेन द्वारा अलम्बुष की पराजय
| घटोत्कच द्वारा अलम्बुष का वध
| द्रोणाचार्य और सात्यकि का युद्ध
| युधिष्ठिर का सात्यकि को कौरव सेना में प्रवेश करने का आदेश
| सात्यकि और युधिष्ठिर का संवाद
| सात्यकि की अर्जुन के पास जाने की तैयारी और उनका प्रस्थान
| सात्यकि का भीम को युधिष्ठिर की रक्षा हेतु लौटाना
| सात्यकि का पराक्रम
| सात्यकि का द्रोणाचार्य से युद्ध
| सात्यकि का कृतवर्मा से युद्ध
| धृतराष्ट्र का संजय से विषादयुक्त वचन
| संजय का धृतराष्ट्र को दोषी बताना
| कृतवर्मा का भीमसेन से युद्ध
| कृतवर्मा का शिखण्डी से युद्ध
| सात्यकि द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| सात्यकि द्वारा त्रिगर्तों की गजसेना का संहार
| सात्यकि द्वारा जलसंध का वध
| सात्यकि का पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्मा की पुन: पराजय
| सात्यकि और द्रोणाचार्य का घोर युद्ध
| सात्यकि द्वारा द्रोण की पराजय और कौरव सेना का पलायन
| सात्यकि द्वारा सुदर्शन का वध
| सात्यकि और उनके सारथि का संवाद
| सात्यकि द्वारा काम्बोजों और यवन आदि सेना की पराजय
| सात्यकि द्वारा दुर्योधन की सेना का संहार
| दुर्योधन का भाइयों सहित पलायन
| सात्यकि द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना का संहार
| दु:शासन का सेना सहित पलायन
| द्रोणाचार्य का दु:शासन को फटकारना
| द्रोणाचार्य द्वारा वीरकेतु आदि पांचालों का वध
| द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न से घोर युद्ध तथा उनका मूर्च्छित होना
| धृष्टद्युम्न का पलायन और द्रोणाचार्य की विजय
| सात्यकि का घोर युद्ध और दु:शासन की पराजय
| कौरव-पांडव सेना का घोर युद्ध
| पांडवों के साथ दुर्योधन का संग्राम
| द्रोणाचार्य द्वारा बृहत्क्षत्र का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा धृष्टकेतु का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा जरासन्धपुत्र सहदेव तथा क्षत्रधर्मा का वध
| द्रोणाचार्य द्वारा चेकितान की पराजय
| अर्जुन और सात्यकि के प्रति युधिष्ठिर की चिन्ता
| युधिष्ठिर का भीमसेन को अर्जुन और सात्यकि का पता लगाने के लिए भेजना
| भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश
| भीमसेन द्वारा द्रोणाचार्य के सारथि सहित रथ को चूर्ण करना
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीमसेन का द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंकना
| भीमसेन की गर्जना सुनकर युधिष्ठिर का प्रसन्न होना
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को द्यूत का परिणाम दिखाकर युद्ध हेतु वापस भेजना
| युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय
| भीमसेन और कर्ण का घोर युद्ध
| भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध
| कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन
| धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध
| भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन
| भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध
| भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध
| भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध
| पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय
| अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन
| सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध
| सात्यकि का अद्भुत पराक्रम
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना
| सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता
| भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध
| अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद
| भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर
| भूरिश्रवा का आमरण अनशन
| सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध
| भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण
| वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा
| अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप
| अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध
| कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय
| अर्जुन का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध
| अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद
| कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय
| अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना
| युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति
| युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन
| दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना
| द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध
| दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय
| रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध
| भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध
| सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय
| द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध
| अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार
| अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध
| सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध
| भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय
| दुर्योधन और कर्ण की बातचीत
| कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना
| कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान
| अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना
| पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम
| अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय
| दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध
| अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध
| अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम
| भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन
| सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध
| द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश
| कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध
| दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश
| कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय
| सात्यकि द्वारा भूरि का वध
| घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन
| कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय
| शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय
| अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन
| शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय
| वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय
| प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध
| नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय
| शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध
| सात्यकि और कर्ण का युद्ध
| कर्ण की दुर्योधन को सलाह
| शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण
| सात्यकि से दुर्योधन की पराजय
| अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय
| धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय
| दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध
| अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण
| कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय
| कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट
| श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना
| घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध
| घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन
| कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम
| अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन
| भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध
| घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप
| कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध
| घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता
| श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना
| कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन
| धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर
| युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना
| उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना
| दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर
| पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध
| धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध
| युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन
| नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय
| दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण
| दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध
| कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण
| द्रोणाचार्य का घोर कर्म
| ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश
| अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा
| द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध
| सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा
| उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध
| धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध
| द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन
| धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना
| कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना
| धृतराष्ट्र का प्रश्न
| अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य
| कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना
| अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन
| भीमसेन के वीरोचित उद्गार
| धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन
| सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना
| भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना
| अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग
| नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद
| श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा
| भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण
| श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना
| अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना
| अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय
| सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना
| सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध
| अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध
| भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध
| अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता
| व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना
| व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना
| द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल
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