पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय

महाभारत द्रोण पर्व मेंं जयद्रथवध पर्व के अंतर्गत 19वें अध्याय मेंं संजय ने धृतराष्ट्र से युद्ध में पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है-[1]

कर्ण द्वारा भीम पर आक्रमण करना

संजय कहते है- राजन! अधिरथ पुत्र कर्ण का भयंकर शरीर सैकड़ों बाणों से व्याप्त था। वह किरणों से प्रकाशित होने वाले सूर्य के समान जान पड़ता था। उस रणभूमि में दोनों हाथों से बाणों को लेते, धनुष पर रखते, खींचते और छोड़ते हुए कर्ण के इन कार्यों में कोई अन्तर नहीं दिखाई देता था। भूपाल! दायें-बायें बाण चलाते हुए कर्ण का मण्डलाकार धनुष अग्नि चक्र के समान भयंकर प्रतीत होता था। महाराज! कर्ण के धनुष से छूटे हुए सुवर्णमय पंख वाले अत्यन्त तीखे बाणों ने सम्पूर्ण दिशाओं तथा सूर्य की प्रभा को भी ढक दिया। तदनन्तर धनुष से छूटे हुए झुकी हुई गाँठ तथा सुवर्णमय पंख वाले बहुत से बाणों के समूह आकाश में दृष्टिगोचर होने लगे। राजन! अधिरथ पुत्र के धनुष से जो बाण छूटते थे, वे श्रेणबद्ध होकर आकाश में क्रौंच पक्षियों के समान सुशोभित होते थे। धनुष के बल से उठे हुए वे सुवर्ण भूषित बाण भीेमसेन के रथ पर लगातार गिर रहे थे। कर्ण के चलाये हुए सहस्रों सुवर्णमय बाण आकाश में टिट्डी दलों के समान प्रकाशित हो रहे थे। सूत पुत्र के धनुष से गिरते हुए बाण ऐसी शोभा पा रहे थे मानो एक ही अत्यन्त विशाल सा बाण आकाश में खड़ा हो। क्रोध में भरे हुए कर्ण ने अपने बाणों की वर्षा से भीमसेन को उसी प्रकार आच्छादित कर दिया, जैसे बादल जल की धाराओं से पर्वत को ढक देता है। भारत! वहाँ सैनिकों सहित आपके पुत्रों ने भीमसेन के बल, वीर्य, पराक्रम और उद्योग को देखा।

भीम और कर्ण द्वारा एक-दूसरे पर बाणों की वर्षा करना

क्रोध में भरे हुए भीमसेन ने समुद्र की भाँति उठी हुई उस बाण वर्षा की तनिक भी परवा न करके कर्ण पर धावा बोल दिया। प्रजानाथ! सुवर्णमय पृष्ठ वाला भीमसेन का विशाल धनुष प्रत्यंचा खींचने से मण्डलाकार हो दूसरे इन्द्र धनुष के समान प्रतीत हो रहा था। उससे जो प्रकट होते थे, वे मानो आकाश को भर रहे थे।[1] भीमसेन ने झुकी हुई गाँठ और सुवर्णमय पंख वाले बाणों से आकाश में सोने की माला सी रच डाली थी, जो बड़ी शोभा पा रही थी। उस समय भीमसेन के बाणों से आहत होकर आकाश में फैले हुए बाणों के जाल टुकड़े-टुकड़े होकर बिखर गये। कर्ण और भीमसेन दोनों के बाण समूह स्पर्श करने पर आग की चिंगारियों के समान प्रतीत होते थे। अनायास ही उनकी युद्ध में सर्वत्र गति थी। सुवर्णमय पंख वाले उन बाण के समूह से सारा आकाश छा गया था। उस समय न तो सूर्य का पता चलता था और न वायु ही चल पाती थी। बाणों के समूह से आच्छादित हुए आकाश में कुछ भी जान नहीं पड़ता था। सूत पुत्र कर्ण नाना प्रकार के बाणों द्वारा भीमसेन को आच्छादित करता हुआ उन महामनस्वी वीर के पराक्रम का तिरस्कार करके उन पर चढ़ आया। माननीय नरेश! उन दोनों के छोड़े हुए बाण समूह वहाँ परस्पर सटकर अत्यन्त वेग के कारण वायु स्वरूप दिखायी देते थे। भरतश्रेष्ठ! उन दोनों पुरुषसिंहों के बाणों के परस्पर टकराने से आकाश में आग प्रकट हों जाती थी।[2]

देवता आदि द्वारा कर्ण और भीम के पराक्रम की प्रशंसा करना

कर्ण ने कुपित होकर भीमसेन के वध की इच्छा से सुनार के माँजे हुए सुवर्ण भूषित तीखे बाणों का प्रहार किया। परंतु भीमसेन ने अपने को सूत पुत्र से विशिष्ट सिद्ध करते हुए बाणों द्वारा आकाश में उन बाणों में से प्रत्येक के तीन-तीन टुकड़े कर डाले और कर्ण से कहा- ‘अरे! खड़ा रह’। फिर क्रोध एवं अमर्ष में भरे हुए बलवान भीमसेन ने जलाने की इच्छा वाले अग्नि देव के समान भयंकर बाणों की वर्षा आरम्भ कर दी। उस समय उन दोनों के गोह चर्म के बने हुए दस्तानों के आघात से चटाचट की आवाज होने लगी। साथ ही हथेली का शब्द और महाभयंकर सिंहनाद भी होने लगा। रथ के पहियों की घरघराहट और प्रत्यन्चा की भयंकर टंकार भी कानों में पड़ने लगी। राजन! परस्पर वध की इच्छा रखने वाले कर्ण और भीमसेन के पराक्रम को देखने की अभिलाषा से समस्त योद्धा युद्ध से उपरत हो गये। देवता, ऋषि, सिद्ध, गन्धर्व और विद्याधर गण ‘साधु साधु’ कहकर उन दोनों की प्रशंसा और फूलों की वर्षा करने लगे।

भीम और कर्ण का युद्ध

तदनन्तर क्रोध में भरे हुए सुदृढ़ पराक्रमी महाबाहु भीमसेन ने अपने अस्त्रों द्वारा कर्ण के अस्त्रों का निवारण करके उसे बाणों से बींध डाला। महाबली कर्ण ने भी रणक्षेत्र में भीमसेन के बाणों का निवारण करके उनके ऊपर विषैले सर्पों के समान नौ नाराच चलाये। भीमसेन ने उतने ही बाणों से आकाश में सूत पुत्र के सारे नाराच काट डाले और उससे कहा ‘खड़ा रह, खड़ा रह’। तत्पश्चात् महाबाहु वीर भीमसेन ने कर्ण के ऊपर ऐसा बाण चलाया, जो क्रुद्ध यमराज के समान तथा दूसरे यमदण्ड के सदृश भयंकर था। राजन! अपने ऊपर आते हुए भीमसेन के उस बाण को प्रतापी राधा नन्दन कण ने तीन बाणों द्वारा हँसते हुए से काट डाला। तब पाण्डु नन्दन भीमसेन ने पुनः भयानक बाणों की वर्षा प्रारम्भ कर दी; परंतु कर्ण ने उन सब अस्त्रों को निर्भयता पूर्वक आत्मसात कर लिया।[2]

क्रोध में भरे हुए सूत पुत्र कर्ण ने अपने अस्त्रों की माया से तथा झुकी हुई गाँठ वाले बाणों द्वारा युद्ध परायण भीमसेन के दो तरकसों, धनुष की प्रत्यंचा, बागडोर तथा घोड़े जोतने की रस्स्यिों को भी युद्ध स्थल में काट डाला। फिर घोड़ों को भी मारकर सारथि को पाँच बाणों से घायल कर दिया। सारथि वहाँ से भागकर तुरंत ही युधामन्यु के रथ पर चढ़ गया। इधर क्रोध में भरे हुए काष्ठााग्नि के समान तेजस्वी राधा पुत्र कर्ण ने भीमसेन का उपहास-सा करते हुए उनकी ध्वजा और पताका को भी काट गिराया। धनुष कट जाने पर कुपित हुए महाबाहु भीमसेन ने शक्ति हाथ में ली और उसे घुमाकर कर्ण के रथ पर दे मारा। कर्ण कुछ थक सा गया था, तो भी उसने बहुत बड़ी उल्का के समान अपनी ओर आती हुई उस सुवर्ण भूषित शक्ति को दस बाणों से काट दिया। मित्र के हित के लिये विचित्र युद्ध करने वाले तथा बाण प्रहार में तत्पर सूत पुत्र कर्ण के तीखे बाणों से दश टुकड़ों में कटकर वह शक्ति धरती पर गिर पड़ी। तब कुन्ती कुमार भीमसेन ने युद्ध में सम्मुख मृत्यु अथवा विजय इन दो में से एक का निश्चित रूप से वरण करने की इच्छा रखकर ढाल और सुवर्ण भूषित तलवार हाथ में ले ली।[3]

भारत! उस समय क्रोध में भरे हुए कर्ण ने हँसते हुए से वेग पूर्वक बहुत से अत्यंत भयंकर बाण मारकर भीमसेन की चमकीली ढाल नष्ट कर दी। महाराज! ढाल और रथ से रहित हुए भीमसेन ने क्रोध से आतुर हो बड़ी उतावली के साथ कर्ण के रथ पर तलवार घुमा कर चला दी। राजेन्द्र! वह बड़ी तलवार आकाश से कुपित सर्प की भाँति आकर सूत पुत्र कर्ण के प्रत्यन्चा सहित धनुष को काटती हुई पृथ्वी पर गिर पड़ी। यह देख अधिरथ पुत्र कर्ण ठठाकर हँस पड़ा और समरांगण में कुपित हो उसने शत्रु विनाशकारी सुदृढ़ प्रत्यन्चा वाला अत्यन्त वेगशाली दूसरा धनुष हाथ में लेकर उस पर कुन्ती पुत्र के वध की इच्छा से सुवर्णमय पंख वाले सहस्रों अत्यन्त तीखे बाणों का संधान किया। कर्ण के धनुष से छूटे हुए बाणों द्वारा घायल किये जाते हुए बलवान भीमसेन कर्ण के मन में व्यथा उत्पन्न करते हुए उसे पकड़ने के लिये आकाश में उछले।

संग्राम में विजय चाहने वाले भीमसेन का वह चरित्र देख राधा पुत्र कर्ण ने अपना अंग सिकोड़कर भीमसेन के आक्रमण को विफल कर दिया। कर्ण की सारी इन्द्रियाँ व्यथित हो गयीं थीं। वह रथ के पिछले भाग में दुबक गया था। उसे उस अवस्था में देखकर भीमसेन उसके ध्वज का सहारा लेकर पृथ्वी पर खड़े हो गये। जैसे गरुड़ सर्प को दबोच लेते हैं, उसी प्रकार भीमसेन ने कर्ण को उसके रथ से पकड़ ले जाने की जो इच्छा की थी, उनके इस कर्म की समसत कौरवों तथा चारणों ने भी प्रशंसा की। धनुष कट जाने तथा रथहीन होने पर स्वधर्म का पालन करते हुए भीमसेन अपने रथ को पीछे करके युद्ध के लिये ही खड़े रहे।[3] उनके रथ आदि साधनों को नष्ट करके राधा नन्दन कर्ण ने फिर क्रोध पूर्वक रणक्षेत्र में युद्ध के लिये उपस्थित हुए इन पाण्डु पुत्र भीमसेन पर आक्रमण किया। महाराज! एक दूसरे से स्पर्धा रखने वाले वे दोनों नरश्रेष्ठ महाबली वीर परस्पर भिड़कर वर्षा ऋतु में गर्जना करने वाले दो मेघों के समान गरज रहे थे। युद्ध स्थल में अमर्ष और क्रोध से भरे हुए उन दोनों पुरुषसिंहों का संग्राम देव-दानव युद्ध के समान भयंकर हो रहा था।[4]

जब कुन्ती कुमार भीमसेन के सारे अस्त्र शस्त्र नष्ट हो गये, उनके पास एक भी आयुध शेष नहीं रह गया और कर्ण के द्वारा उन पर पूर्ववत आक्रमण होता रहा, तब वे रथ के मार्ग को बंद कर देने के लिये अर्जुन के मारे हुए पर्वताकार हाथियों को वहाँ गिरा देख उनके भीतर प्रवेश कर गये। हाथियों के समूह में पहुँचकर मानो वे रथ के आक्रमण से बचने के लिये दुर्ग के भीतर प्रविष्ट हो गये हों, ऐसा अनुभव करते हुए पाण्डु पुत्र भीम केवल अपने प्राण बचाने की इच्छा करने लगे, उन्होंने राधा पुत्र कर्ण पर प्रहार नहीं किया। शत्रुओं की नगरी पर विजय पाने वाले कुन्ती कुमार भीमसेन यह चाहते थे कि कर्ण के बाणों से बचने के लिये कोई व्यवघान (आड़) निकल जाय; इसीलिये वे अर्जुन के बाणों से मारे गये एक हाथी की लाश को उठाकर चुपचाप खड़े हो गये। उस समय वे संजीवन नामक महान औषधि युक्त पर्वत को उठाये हुए हनुमान जी के समान जान पड़ते थे। कर्ण ने बाणों द्वारा उस हाथी के भी टुकड़े टुकड़े कर दिये। तब पाण्डु नन्दन भीम ने हाथी के कटे हुए अंगोें को ही कर्ण पर फेंकना शुरु किया। रथों के पहिये, घोड़ों की लाशे तथा और भी जो-जो वस्तुएँ वे धरती पर पड़ी देखते, उन्हें उठाकर क्रोध पूर्वक कर्ण पर फेंकते थे; परंतु वे जो जो वस्तु फेंकते, उन सबको कर्ण अपने तीखे बाणों से काट डालता था।

अब भीमसेन ने अपने अंगूूठे को मुट्ठी के भीतर करके वज्र तुल्य अत्यन्त भयंकर घूँसा तानकर सूत पुत्र कर्ण को मार डालने की इच्छा की। तब तक क्षण भर में उन्हें अर्जुन की याद आ गयी। अतः सव्यसाची अर्जुन ने पहले जो प्रतिज्ञा की थी, उसकी रक्षा करते हुए पाण्डु नन्दन भीम ने समर्थ एवं शक्तिशाली होने पर भी उस समय कर्ण का वध नहीं किया। इस प्रकार वहाँ बाणों के आघात से व्याकुल हुए भीमसेन को सूत पुत्र कर्ण ने बारंबार अपने पैने बाणों की मार से मूर्च्छित सा कर दिया। परंतु कुन्ती के वचन का स्मरण करके उसने शस्त्रहीन भीमसेन का वध नहीं किया। कर्ण ने उनके पास जाकर अपने धनुष की नोक से उनका स्पर्श किया। धनुष का स्पर्श होते ही वे क्रोध मे भरे हुए सर्प के समान फुफकार उठे और उन्होंने कर्ण के हाथ से वह धनुष छीनकर उसे उसी के मस्तक पर दे मारा।

कर्ण - भीम का संवाद

भीमसेन की मार खाकर राधा पुत्र कर्ण की आँखें लाल हो गयीं। उसने हँसते हुए से यह बात कही- ‘ओ बिना दाढ़ी मूंछ के नपुंसक! ओ मूर्ख! अरे पेटू! तू तो अस्त्र शस्त्र के ज्ञान से सर्वथा शून्य है। युद्ध भीरु कायर! छोकरे! अब फिर कभी युद्ध न करना।[4] ‘दुर्बुद्धि पाण्डव! जहाँ अनेक प्रकार की खाने पीने की वस्तुएँ रखी हों, तू वहीं रहने के योग्य है। युद्धों में तुझे कभी नहीं आना चाहिये। ‘भीम! वन में रहकर तू फल मूल और फूल खाकर व्रत एवं नियम आदि पालन करने के योग्य है। युद्ध कौशल तुझ में नाम मात्र को भी नहीं है। ‘वृकोदर! कहाँ युद्ध और कहाँ मुनिवृत्ति। जा, जा, वन में चला जा। तात! तुझमें युद्ध की योग्यता नहीं है। तू तो वनवास का ही प्रेमी है। ‘मैं तुझे अच्छी तरह जानता हूँ। तू मत्स्यराज विराट का नौकर एक रसोईया रहा है। वृकोदर! तू तो घर में रसोईये, भृत्यजनों तथा दासों को बहुत जल्दी भोजन तैयार करने के लिये प्रेरणा देते हुए क्रोध से उन्हें डाँटने और मारने पीटने की योग्यता रखता है। ‘दुर्मति कुन्ती कुमार भीम! अथवा तू मुनि होकर वन में चला जा। वहाँ इधर उधर से फल ले आ और खा। तू युद्ध में निपुण नहीं है। ‘वृकोदर! तू फल मूल खाने और अतिथि सत्कार करने में समर्थ है। मैं तुझे हथियार उठाने के योग्य ही नहीं मानता’। प्रजा पालक नरेश! कर्ण ने बाल्यावस्था में जो अप्रिय वृत्तान्त घटित हुए थे, उन सबका उल्लेख करते हुए बहुत सी रूखी बातें सुनायीं। तत्पश्चात् वहाँ छिपे हुए भीमसेन का कर्ण ने पुनः धनुष से स्पर्श किया और उस समय उनका उपहास करते हुए फिर कहा - ‘आर्य! तुझे और लोगों के साथ युद्ध करना चाहिये। मेरे जैसे वीरों के साथ नहीं। मेरे जैसे योद्धाऔ से जूझने वालों की ऐसी ही अथवा इससे भी बुरी दशा होती है। ‘अथवा जहाँ श्रीकृष्ण और अर्जुन हैं, वहीं चला जा। वे रणभूमि में तेरी रक्षा करेंगे। अथवा कुन्ती कुमार! तू घर जा। बच्चे! तुझे युद्ध से क्या लाभ है?’[5]

कर्ण के ये अत्यन्त कठोर वचन सुनकर भीमसेन ठठाकर हँस पड़े और सबके सुनते हुए उससे इस प्रकार बोले - ‘अरे, दुष्ट! मैंने तुझे एक बार नहीं बारंबार हराया है; फिर क्यों व्यर्थ अपने ही मुँह से अपनी बड़ाई कर रहा है। संसार में पूर्व पुरुषों ने देवराज इन्द्र की भी कभी जय और कभी पराजय होती देखी है। ‘नीच कुल में पैदा हुए कर्ण! आ, मेरे साथ मल्ल युद्ध कर ले। जैसे मैंने महान बलशाली महाभोगी कीचक को पीस डाला था, उसी प्रकार इन समसत राजाओं के देखते-देखते मैं तुझे अभी मौत के हवाले कर दूँगा’। भीमसेन का यह अभिप्राय जानकर बुद्धिमानों में श्रेष्ठ कर्ण समस्त धनुर्धरों के सामने ही उस युद्ध से हट गया।[5]

टीका टिप्पणी व संदर्भ

  1. 1.0 1.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 139 श्लोक 19-41
  2. 2.0 2.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 139 श्लोक 42-61
  3. 3.0 3.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 139 श्लोक 62-78
  4. 4.0 4.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 139 श्लोक 79-95
  5. 5.0 5.1 महाभारत द्रोण पर्व अध्याय 139 श्लोक 96-113

सम्बंधित लेख

महाभारत द्रोण पर्व में उल्लेखित कथाएँ


द्रोणाभिषेक पर्व
भीष्म के धराशायी होने से कौरवों का शोक | कौरवों द्वारा कर्ण का स्मरण | कर्ण की रणयात्रा | भीष्म के प्रति कर्ण का कथन | भीष्म का कर्ण को प्रोत्साहन देकर युद्ध के लिए भेजना | कर्ण द्वारा सेनापति पद हेतु द्रोणाचार्य के नाम का प्रस्ताव | दुर्योधन का द्रोणाचार्य से सेनापति बनने के लिए प्रार्थना करना | द्रोणाचार्य का सेनापति के पद पर अभिषेक | कौरव-पांडव सेनाओं का युद्ध और द्रोण का पराक्रम | द्रोणाचार्य के पराक्रम और वध का संक्षिप्त समाचार | द्रोणाचार्य की मृत्यु पर धृतराष्ट्र का शोक | धृतराष्ट्र का शोक से व्याकुल होना और संजय से युद्ध विषयक प्रश्न करना | धृतराष्ट्र का श्रीकृष्ण की संक्षिप्त लीलाओं का वर्णन करना | धृतराष्ट्र का श्रीकृष्ण और अर्जुन की महिमा बताना | द्रोणाचार्य की युधिष्ठिर को जीवित पकड़ लाने की प्रतिज्ञा | अर्जुन का युधिष्ठिर को आश्वासन देना | द्रोणाचार्य का पराक्रम | रणनदी का वर्णन | कौरव-पांडव वीरों का द्वन्द्व युद्ध | अभिमन्यु की वीरता | शल्य से भीमसेन का युद्ध तथा शल्य की पराजय | वृषसेन का पराक्रम तथा कौरव-पांडव वीरों का तुमुल युद्ध | द्रोणाचार्य द्वारा पांडव पक्ष के अनेक वीरों का वध | अर्जुन की द्रोणाचार्य की सेना पर विजय
संशप्तकवध पर्व
सुशर्मा आदि संशप्तक वीरों की प्रतिज्ञा | अर्जुन का युद्ध हेतु सुशर्मा आदि संशप्तक वीरों के निकट जाना | संशप्तक सेनाओं के साथ अर्जुन का युद्ध | अर्जुन द्वारा सुधन्वा का वध | संशप्तकगणों के साथ अर्जुन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य द्वारा गरुड़व्यूह का निर्माण और युधिष्ठिर का भय | धृष्टद्युम्न और दुर्मुख का युद्ध | संकुल युद्ध में गजसेना का संहार | द्रोणाचार्य द्वारा सत्यजित, शतानीक तथा वसुदान आदि की पराजय | द्रोण के युद्ध के विषय में दुर्योधन और कर्ण का संवाद | पांडव सेना के महारथियों के रथ, घोड़े, ध्वज तथा धनुषों का वर्णन | धृतराष्ट्र का खेद प्रकट करना और युद्ध के समाचार पूछना | कौरव-पांडव सैनिकों के द्वन्द्व युद्ध | भीमसेन का भगदत्त के हाथी के साथ युद्ध | भगदत्त और उसके हाथी का भयानक पराक्रम | अर्जुन द्वारा संशप्तक सेना के अधिकांश भाग का वध | अर्जुन का कौरव सेना पर आक्रमण | अर्जुन का भगदत्त और उसके हाथी से युद्ध | श्रीकृष्ण द्वारा भगदत्त के वैष्णवास्त्र से अर्जुन की रक्षा | अर्जुन द्वारा भगदत्त का वध | अर्जुन द्वारा वृषक और अचल का वध | शकुनि की माया और अर्जुन द्वारा उसकी पराजय | अर्जुन के भय से कौरव सेना का पलायन | कौरव-पांडव सेनाओं का घमासान युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा राजा नील का वध | भीमसेन का कौरव महारथियों के साथ संग्राम | पांडवों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | अर्जुन और कर्ण का युद्ध | कर्ण और सात्यकि का संग्राम
अभिमन्युवध पर्व
दुर्योधन का उपालम्भ तथा द्रोणाचार्य की प्रतिज्ञा | अभिमन्यु वध के वृत्तान्त का संक्षेप में वर्णन | संजय द्वारा अभिमन्यु की प्रशंसा | द्रोणाचार्य द्वारा चक्रव्यूह का निर्माण | युधिष्ठिर और अभिमन्यु का संवाद | चक्रव्यूह भेदन के लिए अभिमन्यु की प्रतिज्ञा | अभिमन्यु द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार | अभिमन्यु द्वारा अश्मकपुत्र का वध | शल्य का मूर्छित होना और कौरव सेना का पलायन | अभिमन्यु द्वारा शल्य के भाई का वध | द्रोणाचार्य की रथसेना का पलायन | द्रोणाचार्य द्वारा अभिमन्यु की प्रशंसा | दुर्योधन के आदेश से दु:शासन का अभिमन्यु से युद्ध | अभिमन्यु द्वारा दु:शासन और कर्ण की पराजय | अभिमन्यु द्वारा कर्ण के भाई का वध | अभिमन्यु द्वारा कौरव सेना का संहार | जयद्रथ का पांडवों को चक्रव्यूह में प्रवेश करने से रोकना | जयद्रथ का पांडवों के साथ युद्ध और व्यूहद्वार को रोक रखना | अभिमन्यु द्वारा वसातीय आदि अनेक योद्धाओं का वध | अभिमन्यु द्वारा सत्यश्रवा, रुक्मरथ और सैकड़ों राजकुमारों का वध | अभिमन्यु द्वारा दुर्योधन के पुत्र लक्ष्मण का वध | अभिमन्यु द्वारा क्राथपुत्र का वध | अभिमन्यु द्वारा वृन्दारक तथा बृहद्वल का वध | अभिमन्यु द्वारा अश्वकेतु, भोज और कर्ण के मंत्री आदि का वध | कौरव महारथियों द्वारा अभिमन्यु के धनुष और तलवार आदि का नाश | कौरव महारथियों के सहयोग से अभिमन्यु का वध | युधिष्ठिर द्वारा भागती हुई पांडव सेना को आश्वासन | तेरहवें दिन के युद्ध की समाप्ति एवं रणभूमि का वर्णन | युधिष्ठिर का विलाप | युधिष्ठिर के पास व्यास का आगमन | व्यास द्वारा मृत्यु की उत्पत्ति का प्रसंग आरम्भ करना | शंकर और ब्रह्मा का संवाद | मृत्यु की उत्पत्ति | मृत्यु की घोर तपस्या | ब्रह्मा द्वारा मृत्यु को वर की प्राप्ति | नारद-अकम्पन संवाद का उपंसहार | नारद की कृपा से राजा सृंजय को पुत्र की प्राप्ति | दस्युओं द्वारा राजा सृंजय के पुत्र का वध | नारद द्वारा सृंजय को मरुत्त का चरित्र सुनाना | राजा सुहोत्र की दानशीलता | राजा पौरव के अद्भुत दान का वृत्तान्त | राजा शिबि के यज्ञ और दान की महत्ता | भगवान श्रीराम का चरित्र | राजा भगीरथ का चरित्र | राजा दिलीप का उत्कर्ष | राजा मान्धाता की महत्ता | राजा ययाति का उपाख्यान | राजा अम्बरीष का चरित्र | राजा शशबिन्दु का चरित्र | राजा गय का चरित्र | राजा रन्तिदेव की महत्ता | राजा भरत का चरित्र | राजा पृथु का चरित्र | परशुराम का चरित्र | नारद द्वारा सृंजय के पुत्र को जीवित करना | व्यास का युधिष्ठिर को समझाकर अन्तर्धान होना
प्रतिज्ञा पर्व
अभिमन्यु की मृत्यु के कारण अर्जुन का विषाद | अभिमन्यु की मृत्यु पर अर्जुन का क्रोध | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन को अभिमन्युवध का वृत्तान्त सुनाना | अर्जुन की जयद्रथ को मारने की प्रतिज्ञा | अर्जुन की प्रतिज्ञा से जयद्रथ का भय | दुर्योधन और द्रोणाचार्य का जयद्रथ को आश्वासन | श्रीकृष्ण का अर्जुन को कौरवों के जयद्रथ की रक्षा विषयक उद्योग का समाचार बताना | अर्जुन के वीरोचित वचन | अशुभसूचक उत्पातों से कौरव सेना में भय | श्रीकृष्ण का सुभद्रा को आश्वासन | सुभद्रा का विलाप और श्रीकृष्ण द्वारा आश्वासन | पांडव सैनिकों की अर्जुन के लिए शुभाशंसा | अर्जुन की सफलता हेतु श्रीकृष्ण के दारुक से उत्साह भरे वचन | अर्जुन का स्वप्न में श्रीकृष्ण के साथ शिव के समीप जाना | अर्जुन और श्रीकृष्ण द्वारा शिव की स्तुति | अर्जुन को स्वप्न में पुन: पाशुपतास्त्र की प्राप्ति | युधिष्ठिर का ब्राह्मणों को दान देना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण का पूजन | अर्जुन की प्रतिज्ञा की सफलता हेतु युधिष्ठिर की श्रीकृष्ण से प्रार्थना | जयद्रथ वध हेतु श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को आश्वासन | युधिष्ठिर का अर्जुन को आशीर्वाद | सात्यकि और श्रीकृष्ण के साथ अर्जुन की रणयात्रा | अर्जुन का सात्यकि को युधिष्ठिर की रक्षा का आदेश
जयद्रथवध पर्व
धृतराष्ट्र का विलाप | संजय का धृतराष्ट्र को उपालम्भ | द्रोणाचार्य द्वारा चक्रशकट व्यूह का निर्माण | दुर्मर्षण का अर्जुन से लड़ने का उत्साह | अर्जुन का रणभूमि में प्रवेश और शंखनाद | अर्जुन द्वारा दुर्मर्षण की गजसेना का संहार | अर्जुन से हताहत होकर दु:शासन का सेनासहित पलायन | अर्जुन और द्रोणाचार्य का वार्तालाप तथा युद्ध | अर्जुन का कौरव सैनिकों द्वारा प्रतिरोध | अर्जुन का द्रोणाचार्य और कृतवर्मा से युद्ध | श्रुतायुध का अपनी ही गदा से वध | अर्जुन द्वारा सुदक्षिण का वध | अर्जुन द्वारा श्रुतायु, अच्युतायु, नियतायु, दीर्घायु और अम्बष्ठ आदि का वध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ | अर्जुन से युद्ध हेतु द्रोणाचार्य का दुर्योधन के शरीर में दिव्य कवच बाँधना | द्रोण और धृष्टद्युम्न का भीषण संग्राम | उभय पक्ष के प्रमुख वीरों का संकुल युद्ध | कौरव-पांडव सेना के प्रधान वीरों का द्वन्द्व युद्ध | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का युद्ध | सात्यकि द्वारा धृष्टद्युम्न की रक्षा | द्रोणाचार्य और सात्यकि का अद्भुत युद्ध | अर्जुन द्वारा तीव्र गति से कौरव सेना में प्रवेश | अर्जुन द्वारा विन्द और अनुविन्द का वध | अर्जुन द्वारा अद्भुत जलाशय का निर्माण | श्रीकृष्ण द्वारा अश्वपरिचर्या | अर्जुन का शत्रुसेना पर आक्रमण और जयद्रथ की ओर बढ़ना | श्रीकृष्ण और अर्जुन को आगे बढ़ा देख कौरव सैनिकों की निराशा | जयद्रथ की रक्षा हेतु दुर्योधन का अर्जुन के समक्ष आना | श्रीकृष्ण का अर्जुन की प्रशंसापूर्वक प्रोत्साहन देना | अर्जुन और दुर्योधन का एक-दूसरे के सम्मुख आना | दुर्योधन का अर्जुन को ललकारना | दुर्योधन और अर्जुन का युद्ध | अर्जुन द्वारा दुर्योधन की पराजय | अर्जुन का कौरव महारथियों के साथ घोर युद्ध | अर्जुन तथा कौरव महारथियों के ध्वजों का वर्णन | अर्जुन का नौ कौरव महारथियों के साथ अकेले युद्ध | द्रोणाचार्य की सेना का पांडव सेना से द्वन्द्व युद्ध | युधिष्ठिर का द्रोणाचार्य से युद्ध और रणभूमि से पलायन | क्षेमधूर्ति तथा वीरधन्वा का वध | निरमित्र तथा व्याघ्रदत्त का वध और दुर्मुख तथा विकर्ण की पराजय | द्रौपदी के पुत्रों द्वारा शल का वध | भीमसेन द्वारा अलम्बुष की पराजय | घटोत्कच द्वारा अलम्बुष का वध | द्रोणाचार्य और सात्यकि का युद्ध | युधिष्ठिर का सात्यकि को कौरव सेना में प्रवेश करने का आदेश | सात्यकि और युधिष्ठिर का संवाद | सात्यकि की अर्जुन के पास जाने की तैयारी और उनका प्रस्थान | सात्यकि का भीम को युधिष्ठिर की रक्षा हेतु लौटाना | सात्यकि का पराक्रम | सात्यकि का द्रोणाचार्य से युद्ध | सात्यकि का कृतवर्मा से युद्ध | धृतराष्ट्र का संजय से विषादयुक्त वचन | संजय का धृतराष्ट्र को दोषी बताना | कृतवर्मा का भीमसेन से युद्ध | कृतवर्मा का शिखण्डी से युद्ध | सात्यकि द्वारा कृतवर्मा की पराजय | सात्यकि द्वारा त्रिगर्तों की गजसेना का संहार | सात्यकि द्वारा जलसंध का वध | सात्यकि का पराक्रम तथा दुर्योधन और कृतवर्मा की पुन: पराजय | सात्यकि और द्रोणाचार्य का घोर युद्ध | सात्यकि द्वारा द्रोण की पराजय और कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सुदर्शन का वध | सात्यकि और उनके सारथि का संवाद | सात्यकि द्वारा काम्बोजों और यवन आदि सेना की पराजय | सात्यकि द्वारा दुर्योधन की सेना का संहार | दुर्योधन का भाइयों सहित पलायन | सात्यकि द्वारा पाषाणयोधी म्लेच्छों की सेना का संहार | दु:शासन का सेना सहित पलायन | द्रोणाचार्य का दु:शासन को फटकारना | द्रोणाचार्य द्वारा वीरकेतु आदि पांचालों का वध | द्रोणाचार्य का धृष्टद्युम्न से घोर युद्ध तथा उनका मूर्च्छित होना | धृष्टद्युम्न का पलायन और द्रोणाचार्य की विजय | सात्यकि का घोर युद्ध और दु:शासन की पराजय | कौरव-पांडव सेना का घोर युद्ध | पांडवों के साथ दुर्योधन का संग्राम | द्रोणाचार्य द्वारा बृहत्क्षत्र का वध | द्रोणाचार्य द्वारा धृष्टकेतु का वध | द्रोणाचार्य द्वारा जरासन्धपुत्र सहदेव तथा क्षत्रधर्मा का वध | द्रोणाचार्य द्वारा चेकितान की पराजय | अर्जुन और सात्यकि के प्रति युधिष्ठिर की चिन्ता | युधिष्ठिर का भीमसेन को अर्जुन और सात्यकि का पता लगाने के लिए भेजना | भीमसेन का कौरव सेना में प्रवेश | भीमसेन द्वारा द्रोणाचार्य के सारथि सहित रथ को चूर्ण करना | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध | भीमसेन का द्रोणाचार्य के रथ को आठ बार फेंकना | भीमसेन की गर्जना सुनकर युधिष्ठिर का प्रसन्न होना | भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को द्यूत का परिणाम दिखाकर युद्ध हेतु वापस भेजना | युधामन्यु तथा उत्तमौजा का दुर्योधन के साथ युद्ध | भीमसेन द्वारा कर्ण की पराजय | भीमसेन और कर्ण का घोर युद्ध | भीमसेन द्वारा कर्ण के सारथि सहित रथ का विनाश | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्जय का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुर्मुख का वध | कर्ण-भीमसेन युद्ध में कर्ण का पलायन | धृतराष्ट्र का खेदपूर्वक भीमसेन के बल का वर्णन और अपने पुत्रों की निन्दा | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के पाँच पुत्रों का वध | भीमसेन और कर्ण का युद्ध तथा कर्ण का पलायन | भीमसेन का पराक्रम तथा धृतराष्ट्र के सात पुत्रों का वध | भीमसेन का कर्ण से युद्ध तथा दुर्योधन के सात भाइयों का वध | भीमसेन और कर्ण का भयंकर युद्ध | पहले भीम की और पीछे कर्ण की विजय | अर्जुन के बाणों से व्यथित होकर कर्ण और अश्वत्थामा का पलायन | सात्यकि द्वारा अलम्बुष का और दु:शासन के घोड़ों का वध | सात्यकि का अद्भुत पराक्रम | श्रीकृष्ण का अर्जुन को सात्यकि के आगमन की सूचना देना | सात्यकि के आगमन से अर्जुन की चिन्ता | भूरिश्रवा और सात्यकि का रोषपूर्ण सम्भाषण और युद्ध | अर्जुन द्वारा भूरिश्रवा की भुजा का उच्छेद | भूरिश्रवा का अर्जुन को उपालम्भ देना और अर्जुन का उत्तर | भूरिश्रवा का आमरण अनशन | सात्यकि द्वारा भूरिश्रवा का वध | भूरिश्रवा द्वारा सात्यकि के अपमानित होने का कारण | वृष्णिवंशी वीरों की प्रशंसा | अर्जुन का जयद्रथ पर आक्रमण तथा दुर्योधन और कर्ण का वार्तालाप | अर्जुन का कौरव योद्धाओं के साथ युद्ध | कर्ण और अर्जुन का युद्ध तथा कर्ण की पराजय | अर्जुन का अद्भुत पराक्रम | अर्जुन द्वारा सिन्धुराज जयद्रथ का वध | अर्जुन के बाणों से कृपाचार्य का मूर्छित होना तथा अर्जुन का खेद | कर्ण और सात्यकि का युद्ध एवं कर्ण की पराजय | अर्जुन का कर्ण को फटकारना और वृषसेन वध की प्रतिज्ञा | श्रीकृष्ण का अर्जुन को प्रतिज्ञा पूर्ण होने पर बधाई देना | श्रीकृष्ण का अर्जुन को रणभूमि का दृश्य दिखाते हुए युधिष्ठिर के पास जाना | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को अर्जुन की विजय का समाचार सुनाना | युधिष्ठिर द्वारा श्रीकृष्ण की स्तुति | युधिष्ठिर द्वारा अर्जुन, भीम एवं सात्यकि का अभिनन्दन | दुर्योधन का व्याकुल होकर द्रोणाचार्य को उपालम्भ देना | द्रोणाचार्य का दुर्योधन को उत्तर और युद्ध के लिए प्रस्थान | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत तथा पुन: युद्ध का आरम्भ
घटोत्कचवध पर्व
कौरव-पांडव सेना का युद्ध | दुर्योधन और युधिष्ठिर का संग्राम तथा दुर्योधन की पराजय | रात्रियुद्ध में पांडव सैनिकों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रोणाचार्य द्वारा शिबि का वध | भीमसेन द्वारा ध्रुव, जयरात एवं कलिंग राजकुमार का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र दुष्कर्ण और दुर्मद का वध | सोमदत्त और सात्यकि का युद्ध तथा सोमदत्त की पराजय | द्रोणाचार्य का पांडवों से घोर संग्राम | घटोत्कच और अश्वत्थामा का युद्ध तथा अंजनपर्वा का वध | अश्वत्थामा द्वारा एक अक्षौहिणी राक्षस सेना का संहार | अश्वत्थामा का अद्भुत पराक्रम तथा द्रुपदपुत्रों का वध | सोमदत्त की मूर्छा तथा भीमसेन द्वारा बाह्लीक का वध | भीमसेन द्वारा धृतराष्ट्र के दस पुत्रों और शकुनि के पाँच भाइयों का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर के युद्ध में युधिष्ठिर की विजय | दुर्योधन और कर्ण की बातचीत | कृपाचार्य द्वारा कर्ण को फटकारना | कर्ण द्वारा कृपाचार्य का अपमान | अश्वत्थामा का कर्ण को मारने के लिये उद्यत होना | पांडवों और पांचालों का कर्ण पर आक्रमण तथा कर्ण का पराक्रम | अर्जुन द्वारा कर्ण की पराजय | दुर्योधन का अश्वत्थामा से पांचालों के वध का अनुरोध | अश्वत्थामा का दुर्योधन को उपालम्भपूर्ण आश्वासन तथा पांचालों से युद्ध | अश्वत्थामा का धृष्टद्युम्न से युद्ध तथा उसका अद्भुत पराक्रम | भीमसेन और अर्जुन का आक्रमण तथा कौरव सेना का पलायन | सात्यकि द्वारा सोमदत्त का वध | द्रोणाचार्य और युधिष्ठिर का युद्ध | श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को द्रोणाचार्य से दूर रहने का आदेश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं में प्रदीपों का प्रकाश | कौरवों और पांडवों की सेनाओं का घमासान युद्ध | दुर्योधन का द्रोणाचार्य की रक्षा हेतु सैनिकों को आदेश | कृतवर्मा द्वारा युधिष्ठिर की पराजय | सात्यकि द्वारा भूरि का वध | घटोत्कच और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | भीम और दुर्योधन का युद्ध तथा दुर्योधन का पलायन | कर्ण द्वारा सहदेव की पराजय | शल्य द्वारा विराट के भाई शतानीक का वध और विराट की पराजय | अर्जुन से पराजित होकर अलम्बुष का पलायन | शतानीक के द्वारा चित्रसेन की पराजय | वृषसेन के द्वारा द्रुपद की पराजय | प्रतिबिन्ध्य एवं दु:शासन का युद्ध | नकुल के द्वारा शकुनि की पराजय | शिखण्डी और कृपाचार्य का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य से युद्ध | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रुमसेन का वध | सात्यकि और कर्ण का युद्ध | कर्ण की दुर्योधन को सलाह | शकुनि का पांडव सेना पर आक्रमण | सात्यकि से दुर्योधन की पराजय | अर्जुन से शकुनि और उलूक की पराजय | धृष्टद्युम्न से कौरव सेना की पराजय | दुर्योधन के उपालम्भ से द्रोणाचार्य और कर्ण का घोर युद्ध | अर्जुन सहित भीमसेन का कौरवों पर आक्रमण | कर्ण द्वारा धृष्टद्युम्न एवं पांचालों की पराजय | कर्ण के पराक्रम से युधिष्ठिर की घबराहट | श्रीकृष्ण और अर्जुन का घटोत्कच को कर्ण के साथ युद्ध हेतु भेजना | घटोत्कच और जटासुरपुत्र अलम्बुष का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा जटासुरपुत्र अलम्बुष का वध | घटोत्कच और उसके रथ आदि के स्वरूप का वर्णन | कर्ण और घटोत्कच का घोर संग्राम | अलायुध के स्वरूप और रथ आदि का वर्णन | भीमसेन और अलायुध का घोर युद्ध | घटोत्कच द्वारा अलायुध का वध और दुर्योधन का पश्चाताप | कर्ण द्वारा इन्द्रप्रदत्त शक्ति से घटोत्कच का वध | घटोत्कच वध से पांडवों का शोक तथा श्रीकृष्ण की प्रसन्नता | श्रीकृष्ण का अर्जुन को जरासंध आदि के वध करने का कारण बताना | कर्ण द्वारा अर्जुन पर शक्ति न छोड़ने के रहस्य का वर्णन | धृतराष्ट्र का पश्चाताप और संजय का उत्तर | युधिष्ठिर का शोक और श्रीकृष्ण तथा व्यास द्वारा उसका निवारण
द्रोणवध पर्व
| अर्जुन के कहने से उभयपक्ष के सैनिकों का सो जाना | उभयपक्ष के सैनिकों का चन्द्रोदय के बाद पुन: युद्ध में लग जाना | दुर्योधन का उपालम्भ और द्रोणाचार्य का व्यंग्यपूर्ण उत्तर | पांडव वीरों का द्रोणाचार्य पर आक्रमण | द्रुपद के पौत्रों तथा द्रुपद और विराट आदि का वध | धृष्टद्युम्न की प्रतिज्ञा और दोनों दलों में घमासान युद्ध | युद्धस्थल की भीषण अवस्था का वर्णन | नकुल के द्वारा दुर्योधन की पराजय | दु:शासन और सहदेव का घोर युद्ध | कर्ण और भीमसेन का घोर युद्ध | द्रोणाचार्य और अर्जुन का घोर युद्ध | धृष्टद्युम्न का दु:शासन को हराकर द्रोणाचार्य पर आक्रमण | दुर्योधन और सात्यकि का संवाद तथा युद्ध | कर्ण और भीमसेन का संग्राम तथा अर्जुन का कौरवों पर आक्रमण | द्रोणाचार्य का घोर कर्म | ऋषियों का द्रोण को अस्त्र त्यागने का आदेश | अश्वत्थामा की मृत्यु सुनकर द्रोण की जीवन से निराशा | द्रोणाचार्य और धृष्टद्युम्न का घोर युद्ध | सात्यकि की शूरवीरता और प्रशंसा | उभयपक्ष के श्रेष्ठ महारथियों का परस्पर युद्ध | धृष्टद्युम्न का द्रोणाचार्य पर आक्रमण और घोर युद्ध | द्रोणाचार्य का अस्त्र त्यागकर योगधारणा द्वारा ब्रह्मलोक गमन | धृष्टद्युम्न द्वारा द्रोणाचार्य के मस्तक का उच्छेद
नारायणास्त्र-मोक्षपर्व
| कौरव सैनिकों तथा सेनापतियों का भागना | कृपाचार्य का अश्वत्थामा को द्रोणवध का वृत्तान्त सुनाना | धृतराष्ट्र का प्रश्न | अश्वत्थामा के क्रोधपूर्ण उद्गार | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्राकट्य | कौरव सेना का सिंहनाद सुनकर युधिष्ठिर का अर्जुन से कारण पूछना | अर्जुन द्वारा अश्वत्थामा के क्रोध एवं गुरुहत्या के भीषण परिणाम का वर्णन | भीमसेन के वीरोचित उद्गार | धृष्टद्युम्न के द्वारा अपने कृत्य का समर्थन | सात्यकि और धृष्टद्युम्न का परस्पर क्रोधपूर्ण वाग्बाणों से लड़ना | भीम, सहदेव तथा युधिष्ठिर द्वारा सात्यकि और धृष्टद्युम्न को लड़ने से रोकना | अश्वत्थामा द्वारा नारायणास्त्र का प्रयोग | नारायणास्त्र के प्रयोग से युधिष्ठिर का खेद | श्रीकृष्ण के बताये हुए उपाय से सैनिकों की रक्षा | भीम का वीरोचित उद्गार और उन पर नारायणास्त्र का प्रबल आक्रमण | श्रीकृष्ण का भीम को रथ से उतारकर नारायणास्त्र को शान्त करना | अश्वत्थामा का पुन: नारायणास्त्र के प्रयोग में असमर्थता बताना | अश्वत्थामा द्वारा धृष्टद्युम्न की पराजय | सात्यकि का दुर्योधन, कृपाचार्य, कृतवर्मा, कर्ण और वृषसेन को भगाना | सात्यकि का अश्वत्थामा से घोर युद्ध | अश्वत्थामा द्वारा मालव, पौरव और चेदिदेश के युवराज का वध | भीम और अश्वत्थामा का घोर युद्ध | अश्वत्थामा के आग्नेयास्त्र से एक अक्षौहिणी पांडव सेना का संहार | श्रीकृष्ण और अर्जुन पर आग्नेयास्त्र का प्रभाव न होने से अश्वत्थामा की चिन्ता | व्यास का अश्वत्थामा को शिव और श्रीकृष्ण की महिमा बताना | व्यास का अर्जुन से शिव की महिमा बताना | द्रोण पर्व के पाठ और श्रवण का फल

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः