नरहरि-नरहरि, सुमिरन करौ2 -सूरदास

सूरसागर

सप्तम स्कन्ध

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राग बिलावल
श्री नृसिंह अवतार


ताकौ पुत्र भयौ प्रहलाद। भयौ असुर-मन अति अहलाद।
पाँच बरस की भइ जब आइ। संडामर्कहि लियों बुलाइ।
तिनकै सँग चटसार पठायौ। राम-राम सौं तिन चित लायौ।
सँडामर्क रहे पचि हारि। राजनीति कहि बारंबार ।
कह्यौ प्रहलाद, पढ़त मै सार। कहा पढ़ावत ओर जँजार।
जब पांडे इत-उत कहुँ गए। बालक सब इकठौरे भए।
कहयौ,‘‘ यह ज्ञान कहाँ तुम पायौ? ‘नारद माता-गर्भ सुनायौ‘।
सबनि कहयौ, देउ हमैं सिखाइ। सबहिनि कै मन ऐसी आइ।
कह्यौ सबनि सौ तब समुझाइ। सब तजि, भजौ चरन रधुराइ।
रामहिं राम पढौ रे भाई। रामहिं जहँ-तहँ होत सहाई।
इहाँ कोइ काहू कौ नाहि। रिन, संबंध मिलन जग माहि।
काल-अवधि जब पहुँचै आइ। चलत वार कोउ संग न जाइ।
सदा सँधाती श्री जदुराइ। भजियै ताहि सदा लव लाइ।
हर्त्ता कर्त्ता आपै सौइ। घट-घट व्याकप रहयौ है जोइ।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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