ध्रुव विसाता-वचन सुनि रिसायौ।
दीन के द्याल गोपाल,करूनामयी मानु सौं सुनि, तुरत सरन आयौ।
बहुरि जब बन चल्यौ,पंथ नारद मिल्यौ, कृष्न-निज-धाम मथुरा बतायौ।
मुकुट सिर धरैं, बनमाल कौस्तुभ गरे, चतुर्भुज स्याम, सुंदरहिं ध्यायौ।
भए अनुकूल हरि, दियौ तिहि, तुरत बर, जगत करि राजपद अटल पायौ।
सूर के प्रभू की सरन आयौ जो नर, करि जगत भोग बैकुँठ सिधायौ।।10।।