धनि जसुमति बड़भागिनी -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सूहौ बिलावल
पाँवों चलना


 
धनि जसुमति बड़भागिनि, लिए कान्ह खिलावै।
तनक-तनक भुज पकरि कै, ठाढ़ौ हौन सिखावै।
लरखरात गिरि परत हैं, चलि घुटुरुनि धावैं।
पुनि क्रम-क्रम भुज टेकि कै, पग द्वैक चलावैं।
अपने पाइनि कबहिं लौं, मोहिं देखन धावै।
सूरदास जसुमति इहै बिधि सौं जु मनावै।।112।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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