दासी जीवण
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पूरा नाम | दासी जीवण |
अन्य नाम | जीवनदास (मूल नाम) |
मृत्यु | संवत 1887 |
कर्म भूमि | भारत |
भाषा | गुजराती |
प्रसिद्धि | भक्त कवि |
नागरिकता | भारतीय |
अन्य जानकारी | प्रभु-प्रेम की मस्ती में दासी जीवण ने अनेक भजन बनाये हैं। उनकी वाणी जंगल की झोंपड़ी-झोंपड़ी में गायी जाती है। |
दासी जीवण का नाम गुजरात के प्रसिद्ध भक्त कवियों में लिया जाता है। कठियावाड़ में बहुत से प्रेमी भक्त हुए हैं और प्रभु-प्रेम की मस्ती में उन्होंने अनेक भजन बनाये हैं। पर उनमें सबसे प्रथम स्थान दासी जीवण का है। इनकी वाणी जंगल की झोंपड़ी-झोंपड़ी में गायी जाती है।
- ‘दासी जीवण’ नाम से ये स्त्री-भक्त मालूम होते हैं, पर वस्तुतः ऐसा नहीं है। इनका नाम संत जीवनदास था। ये गोण्डल शहर के पास घोघाबदर गांव के चमार थे।
- एक दिन भजन-मण्डली में गुरु ने उनसे पूछा था कि "तुम पुरुष होकर दासी जीवण कहलाते हो, इसका क्या रहस्य है?" सुनते हैं कि इसके बाद भजन की खूब धुन लगी और सब एकतार हो गये। तब संत जीवण सोलह वर्ष की गोपी के रूप में सबको दिखायी दिये। गुरु ने शाबाशी दी, तदनन्तर वे फिर अपने रूप में आ गये।
- एक बार साधु-सेवा के लिये उन्होंने हद से बाहर खर्च कर डाला, इसलिये चमड़े के इजारे की रकम वे दरबार को चुका नहीं सके। अगले दिन जेल में जाने की तैयारी हो गयी। उस दिन रात को नरसी मेहताजी के समान उन्होंने भगवान से प्रार्थना की, गाया- "मेरी टूटी गाड़ी और डूबती नाव को तारने वाले तुम एक ही हो ! मैंने तो तुम्हारा आश्रय लिया है और लाज तुम्हारी जाने वाली है।" सुनते हैं कि व्यापारी के रूप में भगवान दरबार में जाकर जितना देना था, उतना स्वयं भर आये।
- दासी जीवण महान सिद्ध भक्त थे। बड़े उपकारी और चमत्कारिक ढंग से उन्होंने जीवन बिताया।
- संवत 1887 में दासी जीवण का देहान्त हुआ।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
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