तुम अब हरि कौं दोष लगावति।
नंद-नँदन खोटे तुम कीन्हे, मुरली भली कहावति!।
यह छिनारि, लंपट अन्याइनि, कुल दाहत नहिं बार।
मधुर-मधुर बानी कहि रिझए, साजि तान-सिंगार।।
वह आई टोना सिर डारति, सप्त सुरनि कल गान।
ऐसैं बनि-ठनि मिली आइ कै, ह्वै गए स्याम अजान।।
पुरुष भँवर उन कहँ कह लागै, नारि भजै जब आइ।
सूरज प्रभु तब कहा करैं री, ऐसी मिली बलाइ।।1294।।