तिनकौ स्याम पत्याने सुनियत।
ह्वाऊँ जाइ अकाज करैंगे, यह गुनि गुनि सिर धुनियत।।
बिबस भई तन की सुधि नाही, बिरह फाँस गए डारि।
लगनगाँठि बैठी नहि छूटति, मगनमूरछा भारि।।
प्रेम जीव निसरत नहि छूटति, अंतर अंतर जानति।
'सूरदास' प्रभु क्यौ सुधि पावै, बार बार गुन गानति।।2291।।