तरुनी गई सब बिलखाइ।
जबहिं आए सुने ऊधौ, अतिहि गई झुराइ।।
परी व्याकुल जहाँ जसुमति, गई तहँ सब धाइ।
नीर नैनन बहति धारा, लई पोछि उठाइ।।
इक भई अब चलौ मारग सखा पठयौ स्याम।
सुनौ हरि कुसलात ल्यायौ महरि सौ कहै बाम।।
जबहि लौ रथ निकट आयौ, तबहुँ तै परतीति।
वह मुकुट कुंडल पितबर, ‘सूर’ प्रभु अँगरीति।। 3469।।