तबहिं जसोदा माखन ल्याई।
मैं मथि के अबहीं धरि राख्यौ, तुम हित कुंवर कन्हाई।।
माँगि लेहु याही बिधि मौसौं, मो आगैं तुम खाहु।।
बाहिर जनि कबहूँ कछु खैयै, डीठि लगैगी काहु।।
तनक-तनक कछु खाहु लाल मेरे, ज्यौं बढ़ि आवै देह।।
सूर स्याम अब होहु सयाने, बैरिनि कैं मुंह खेह।।987।।