तब विलंब नहिं कियौ -सूरदास

सूरसागर

प्रथम स्कन्ध

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राग जैतश्री




तब विलंब नहिं कियौ, जबै हिरनाकुस मारयौ।
तब विलंब नहिं कियौ, केस गहि कंद पछारयौ।
तब विलंब नहिं कियौ, सीस दस रावन कट्टे।
तब विलंब नहिं कियौ, सबै दानव दहपट्टे।
कर जोरि सूर विनती करै, सूनहु न हौ रुकमिनि-रवन।
काटौ न फंद मो अंध के, अब विलंब कारन कवन ?।।180।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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