तब राधा इक भाव बतावति।
मुख मुसुकाइ सकुचि पुनि सहजहि, चली अलक सुरझावति।।
एक सखी आवति जल लीन्हे तासौ कहति सुनावति।
टेरि कह्यौ मेरै घर जैहौ, मैं जमुना तै आवति।।
तब सुख पाइ चले हरि घर कौ, हरि प्रियतमहि मनावति।
'सूरज' प्रभु वितपन्न-कोक-गुन, तातै हरि हरि ध्यावति।।2024।।