तनक हरि चितवौजी मोरी ओर -मीराँबाई

मीराँबाई की पदावली

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विनय

राग कान्‍हरा


तनक हरि चितवौजी मोरी ओर ।। टेक ।।
हम चितवत तुम चितवत नाहीं, दिल के बड़े कठोर ।
मेरे आसा चितवनि तुमरी, और न दूजी दोर ।
तुमसे हमकूँ कबर[1] मिलोगे, हमसी लाख करोर ।
ऊभी ठाढ़ी अरज करत हूँ, अरज करत भयो भोर
मीराँ के प्रभु हरि अबिनासी, देस्‍यूँ प्राण अकोर ।।5।।[2]

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. एक होजी
  2. तनक = तनिक, टुक, ज़रा। चितवो = निगाह करो, देखो। 3 चितवनि = कृपादृष्टि, निगाह। दोर = दौड़, पहुँच, स्थान। तुमसे = तुम्हारे सदृश, तुम आपने सामन। कबर = अरे कब, भलाकब। सी = जैसी, समान। ऊभी ठाड़ी = आशा में खड़ी खड़ी। अकोर = अँकोर, भेंट। देस्यूँ = दूँगी। देस्यूँ...अकोर = अपने प्राण न्योछावर कर दूँगी। (देखो- ‘टका लाख दस कीन्ह अकोरा। बिनती कीन्ह पाँय परि गोरा’- जायसी। )
    विशेष‌- प्राय: इसी भाव का एक पद धनी धर्मदास का इस प्रकार है:-
    'साहिब चितवो हमरीं ओर ॥टेक॥
    हम चितवैं तुम चितवो नाहीं, तुम्हारो हृदय कठोर।
    औरन को तो और भरोसो, हमैं भरोसो, तोर॥' इत्यादि।

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