ढोटा नंद कौ यह री।
नाहिं जानति बसत ब्रज मैं, प्रगट गोकुल री।।
धरयौ गिरिवर बाम कर जिहिं, सोइ है यह री।
दैत्य सब इनही सँहारे, आपु-भुज-बल री।।
ब्रजधरनि जो करत चोरी, खात माखन री।
नदधरनी जाहिं बाँध्यौ, अजिर ऊखल री।।
सुरभि ठान लिये बन तै आवत, सबहि गुन इन री।
'सूर' प्रभु ये सबहि लायक, कस डरै जिन री।।3027।।