जगन्नाथ मिश्र हिन्दू पौराणिक ग्रंथ चैतन्य चरितावली के अनुसार चैतन्य महाप्रभु के पिता थे। मिश्र जी की पत्नी का नाम शची देवी था।
कंसारि, परमानन्द, पद्मनाभ, सर्वेश्वर, जनार्दन और त्रैलोक्यनाथ जगन्नाथ मिश्र के भ्राता थे। पण्डित जगन्नाथ मिश्र अपने पिता की अनुमति से संस्कृत विद्या पढ़ने के लिये सिलहट से नवद्वीप में आये और पण्डित गंगादास जी की पाठशाला में अध्ययन करने लगे। इनकी बुद्धि कुशाग्र थी, पढ़ने-लिखने में ये तेज थे इसलिये अल्पकाल में ही, इन्होंने काव्यशास्त्रों का विधिवत अध्ययन करके पाठशाला से ‘पुरन्तर’ की पदवी प्राप्त कर ली थी।[1] इनके रूप-लावण्य तथा विद्या-बुद्धि से प्रसन्न होकर नवद्वीप के प्रसिद्ध पण्डित श्रीनीलाम्बर चक्रवर्ती ने अपनी ज्येष्ठ कन्या शची देवी का इनके साथ विवाह कर दिया था। इनके ज्येष्ठ पुत्र विश्वरूप थे। पण्डित जगन्नाथ मिश्र को गौरांग के पूज्य पिता होने का जग-दुर्लभ सुयश प्राप्त हुआ था।
टीका टिप्पणी और संदर्भ
बाहरी कड़ियाँ
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