गीता रहस्य -तिलक पृ. 266

गीता रहस्य अथवा कर्मयोग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक

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दसवाँ प्रकरण

बीज्ञाजान्‍यग्‍न्‍युपदग्‍धानि न रोहन्ति यथा पुन:।

नदग्धैस्तथा क्लेशैर्नात्मा संपद्यते पुन: ॥

‘’भूना हुआ बीज जैसे उग नहीं सकता, वैसे ही जब ज्ञान से ( कर्मों के ) क्लेश दग्‍ध हो जाते हैं तब वे आत्‍मा को पुन: प्राप्‍त नहीं होते ‘’[1]। उपनिषदों में भी इसी प्रकार ज्ञान की महत्ता बतलाने वाले अनेक वचन है;- जैसे ‘’य एवं वेदाहं ब्रह्मास्‍मीति स इदं सर्वे भवति ‘’[2] जो यह जानता है कि मैं ही ब्रह्म हूँ, वही अमृत ब्रह्म होता है; जिस प्रकार कमलपत्र मे पानी लग नहीं सकता उसी प्रकार जिसे ब्रह्मज्ञान हो गया हो, उसे कर्म दूषित नहीं कर सकते[3]; ब्रह्म जानने वाले को मोक्ष मिलता है[4]; जिसे यह मालूम हो चुका है कि सब कुछ आत्‍ममय है उसे पाप नहीं लग सकता[5]; ‘’ ज्ञात्‍वा देवं मुच्‍यते सर्वपाशै: ‘’[6]– परमेश्‍वर का ज्ञान होने पर सब पाशों से मुक्‍त हो जाता है; ‘’ क्षीयन्‍ते चास्‍य कर्माणि तस्मिन्‍हष्‍टे परावरे ‘’[7] परब्रह्म का ज्ञान होने पर उसके कर्मों का क्षय हो जाता है; ‘’ विद्ययामृतमश्‍नुते ‘’[8]– विद्या से अमृतत्त्व मिलता है; ‘’ तमेव विदित्‍वाऽतिमृत्‍युमेति नान्‍य: पन्‍था विद्यतेऽयनाय ‘’[9] परमेश्‍वर को जान लेने से अमृत्‍व मिलता है, इसको छोड़ मोक्ष प्राप्‍ति का दूसरा मार्ग नहीं है।

और शास्‍त्र दृष्टि से विचार करने पर भी यही सिद्धांत दृढ़ होता है; क्‍योंकि दृश्‍य-सृष्टि मे जो कुछ है वह सब यद्यपि कर्म मय हो , तथापि इस सृष्टि के आधारभूत परब्रह्म को बाधा नहीं दे सकते– अर्थात सब कर्मों को करके भी परब्रह्म अलिप्‍त ही रहता है। इस प्रकरण के आरम्‍भ में बतलाया जा चुका है कि अध्‍यात्‍मशास्‍त्र के अनुसार इस संसार के सब पदार्थों के कर्म ( माया ) और ब्रह्म-स्‍वरूप में प्रवेश करना चाहिये; उसके लिये और दूसरा मार्ग है, क्‍योंकि जब सब पदार्थों के केवल दो ही वर्ग होते हैं तब कर्म से मुक्‍त अवस्‍था सिवा ब्रह्म-स्‍वरूप के और कोई शेष नही रह जाती। परन्‍तु ब्रहम-स्‍वरूपी इस अवस्‍था को प्राप्‍त करने के लिये यह स्‍पष्‍ट रूप से जान लेना चाहिये कि ब्रह्म का स्‍वरूप क्‍या है; नहीं तो करने चलेंगे एक और होगा कुछ दूसरा ही।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

  1. मभा. वन. 199.106, 107; शां. 211. 17
  2. बृ. 1. 4. 10.
  3. छां. 4. 14. 3
  4. तै. 2. 1
  5. बृ. 4.4. 23
  6. श्वे. 5. 13; 6. 13
  7. मुं. 2. 2. 8
  8. ईशा. 11. मैत्रयू. 7. 9
  9. श्रे. 3. 8.

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गीता रहस्य अथवा कर्म योग शास्त्र -बाल गंगाधर तिलक
प्रकरण नाम पृष्ठ संख्या
पहला विषय प्रवेश 1
दूसरा कर्मजिज्ञासा 26
तीसरा कर्मयोगशास्त्र 46
चौथा आधिभौतिक सुखवाद 67
पाँचवाँ सुखदु:खविवेक 86
छठा आधिदैवतपक्ष और क्षेत्र-क्षेत्रज्ञ विचार 112
सातवाँ कापिल सांख्यशास्त्र अथवा क्षराक्षर-विचार 136
आठवाँ विश्व की रचना और संहार 155
नवाँ अध्यात्म 178
दसवाँ कर्मविपाक और आत्मस्वातंत्र्य 255
ग्यारहवाँ संन्यास और कर्मयोग 293
बारहवाँ सिद्धावस्था और व्यवहार 358
तेरहवाँ भक्तिमार्ग 397
चौदहवाँ गीताध्यायसंगति 436
पन्द्रहवाँ उपसंहार 468
परिशिष्ट गीता की बहिरंगपरीक्षा 509
- अंतिम पृष्ठ 854

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