अष्टमोऽध्याय प्रसंग-
'अक्षर' और 'ब्रह्म' दोनों शब्द भगवान् के सगुण और निर्गुण दोनों ही स्वरूपों के वाचक है (8|3,11,21,24) तथा भगवान् का नाम 'ऊँ' है उसे भी 'अक्षर' और 'ब्रह्म' कहते हैं (8।13)। इस अध्याय में भगवान् के सगुण-निर्गुण रूप का और ओंकार का वर्णन है, इसलिये इस अध्याय का नाम 'अक्षर ब्रह्मायोग' रखा गया है।
प्रसंग-
भगवान् को जानने की बात का रहस्य भली-भाँति न समझने के कारण इस आठवें अध्याय के आरम्भ में पहले दो श्लोकों में अर्जुन[1] उपर्युक्त सातों विषयों को समझने के लिये भगवान से सात प्रश्न करते हैं-
अर्जुन उवाच
किं तद्ब्रह्मा किमध्यात्मं किं कर्म पुरुषोत्तम् ।
अधिभूतं च किं प्रोक्तमधिदैवं किमुच्यते ॥1॥
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