- महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत नौवें अध्याय में संजय ने कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं के मध्य घमासान युद्ध का वर्णन किया है, जो इस प्रकार है[1]-
विषय सूची
दोनों सेनाओं के मध्य घमासान युद्ध
संजय कहते हैं- राजेन्द्र! तदनन्तर कौरवों का सृंजयों के साथ घोर युद्ध आरम्भ हो गया, जो देवासुर संग्राम के समान भय बढ़ाने वाला था। पैदल, रथी, हाथी सवार तथा सहस्रों घुड़सवार पराक्रम दिखाते हुए एक दूसरे से भिड़ गये। जैसे वर्षाकाल के आकाश में मेघों की गम्भीर गर्जना होती रहती है, उसी प्रकार रणभूमि में दौडे़ लगाते हुए भीमकाय गजराजों का महान कोलाहल सुनायी देने लगा। मदोन्मत्त हाथियों के आघात से कितने ही रथी रथसहित धरती पर लोट गये। बहुत-से वीर उनसे खदेडे़ जाकर इधर-उधर भागने लगे। भारत! उस युद्धस्थल में शिक्षा प्राप्त रथियों ने घुड़सवारों तथा पादरक्षकों को अपने बाणों से मारकर यमलोक भेज दिया। राजन! रणभूमि में विचरते हुए बहुत-से सुशिक्षित घुड़सवार बड़े-बड़े़ रथों को घेरकर उन पर प्रास, शक्ति तथा ऋष्टियों का प्रहार करने लगे। कितने ही धनुर्धर पुरुष महारथियों को घेर लेते और एक-एक पर बहुत-से योद्धा आक्रमण करके उसे यमलोक पहुँचा देते थे। महाराज! कई हाथियों ने क्रोधपूर्वक बहुत-से बाणों की वर्षा करने वाले किसी रथी को सब ओर से घेरकर मार डाला। भारत! वहाँ रणभूमि में एक हाथी सवार दूसरे हाथी सवार पर और एक रथी दूसरे रथी पर आक्रमण करके शक्ति, तोमर और नाराचों की मार से उसे यमलोक पहुँचा देता था। समरांगण के बीच बहुत-से रथ, हाथी और घोडे़ पैदल योद्धाओं को कुचलते तथा सबको अत्यन्त व्याकुल करते हुए दृष्टिगोचर होते थे। जैसे हिमालय के शिखर की चौरस भूमि पर रहने वाले हंस नीचे पृथ्वी पर जल पीने के लिये तीव्र गति से उड़ते हुए जाते हैं, उसी प्रकार चामरशोभित अश्व वहाँ सब ओर बड़े वेग से दौड़ लगा रहे थे।
प्रजानाथ! उन घोड़ों की टापों से खुदी हुई भूमि प्रियतम के नखों से क्षत-विक्षत हुई नारी के समान विचित्र शोभा धारण करती थी। भारत! घोड़ों की टापों के शब्द, रथ के पहियों की घर्घराहट, पैदल योद्धाओं के कोलाहल, हाथियों की गर्जना तथा वाद्यों के गम्भीर घोष और शंखों की ध्वनि से प्रतिध्वनित हुई यह पृथ्वी वज्रपात की आवाज से गूँजती हुई-सी प्रतीत होती थी। टंकारते हुए धनुष, दमकते हुए अस्त्र-शस्त्रों के समुदाय तथा कवचों की प्रभा से चकाचौंध के कारण कुछ भी सूझ नहीं पड़ता था। हाथी की सूँड़ के समान बहुत-सी भुजाएँ कटकर धरती पर उछलती, लोटती और भयंकर वेग प्रकट करती थीं। महाराज! पृथ्वी पर गिरते हुए मस्तकों का शब्द, ताड़ के वृक्षों चूकर गिरे हुए फलों के धमाके की आवाज के समान सुनायी देता था। भारत! गिरे हुए रक्तरंजित मस्तकों से इस पृथ्वी की ऐसी शोभा हो रही थी, वहाँ सुवर्णमय कमल छिपाये गये हों। राजन! मुझे नेत्रों वाले प्राणशून्य घायल मस्तकों से ढकी हुई पृथ्वी लाल कमलों से आच्छादित हुई सी शोभा पा रही थी। राजेन्द्र! बाजूबंद तथा दूसरे बहुमूल्य आभूषणों से विभूषित, चन्दनचर्चित भुजाएँ कटकर पृथ्वी पर गिरी थीं, जो महान इन्द्रध्वज के समान जान पड़ती थीं। उनके द्वारा रणभूमि की अपूर्व शोभा हो रही थी। उस महासमर में कटी हुई नरेशों की जाँघें हाथी की सूँड़ों के समान प्रतीत होती थी। उनके द्वारा वह सारा समरांगण पट गया था।[1]
वहाँ सैकड़ों कबन्ध सब और बिखरे पड़े थे। छत्र और चँवर भरे हुए थे। उन सबसे वह सेनारूपी वन फूलों से व्याप्त हुई विशाल विपिन के समान सुशोभित होता था। महाराज! वहाँ खून से लथपथ शरीर लेकर निर्भय-से विचरने वाले योद्धा फूले हुए पलाश वृक्षों के समान दिखायी देते थे। रणभूमि में बाणों और तोमरों की मार से पीड़ित हो जहाँ तहाँ गिरते हुए मत वाले हाथी भी कटे हुए बादलों के समान दिखायी देते थे। महाराज! वायु के वेग से छिन्न-भिन्न हुए बादलों के समान महामनस्वी वीरों के बाणों से घायल हुई गजसेना सम्पूर्ण दिशाओं में विदीर्ण हो रही थी। मेघों की घटा के समान प्रतीत होने वाले हाथी चारों ओर से पृथ्वी पर पड़े थे, जो प्रलयकाल में वज्र के आघात से विदीर्ण होकर गिरे हुए पर्वतों के समान प्रतीत होते थे। सवारों सहित धरती पर गिरे हुए घोड़ों के पहाड़ों- जैसे ढेर यत्र-तत्र दृष्टिचोगर होते थे। उस समय रणभूमि में एक रक्त की नदी बह चली, जो परलोक की ओर प्रवाहित होने वाली थी। रक्त ही उसका जल था, रथ भँवर के समान प्रतीत होते थे, ध्वज तटवर्ती वृक्ष के समान जान पड़ते थे, हड्डियाँ कंकड़-पत्थरों का भ्रम उत्पन्न करती थीं, कटी हुई भुजाएँ नाकों के समान दिखायी देती थीं, धनुष उसके स्त्रोत थे, हाथी पार्श्ववर्ती पर्वत और घोडे़ प्रस्तर-खण्ड के तुल्य थे, मेदा और मज्जा ये ही उसके पंख थे, छत्र हंस थे, गदाएँ नौका जान पड़ती थीं, जल को आच्छादित किये हुए थीं, पताकाएँ सुन्दर वृक्ष-सी दिखायी देती थीं, चक्र (पहिये) चक्रवाकों के समूह की भाँति उस नदी का सेवन करते थे और त्रिगुणरूपी सर्प उसमें भरे हुए थे। वह भयंकर नदी शूरवीरों के लिये हर्षजनक तथा कायरों के लिये भय बढ़ाने वाली थी। कौरवों और सृंजयों के समुदाय से वह व्याप्त हो रही थी। परलोक की ओर ले जाने वाली उस अत्यन्त भयंकर नदी को परिघ-जैसी मोटी भुजाओं वाले शूरवीर योद्धा अपने-अपने वाहनरूपी नौकाओं द्वारा पार करते थे।[2]
टीका टिप्पणी व संदर्भ
सम्बंधित लेख
महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ
शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना
| धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना
| दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना
| धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना
| कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन
| भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध
| अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण
| दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना
| कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना
| दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना
| अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव
| दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना
| शल्य के वीरोचित उद्गार
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना
| उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना
| कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन
| नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध
| शल्य का पराक्रम
| कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध
| भीम के द्वारा शल्य की पराजय
| भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध
| दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध
| दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध
| युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध
| मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध
| अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध
| दुर्योधन और धृष्टद्युम्न का युद्ध
| शल्य के साथ नकुल और सात्यकि आदि का घोर युद्ध
| पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय
| युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय
| भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध
| सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन
| पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा
| भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार
| दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना
| धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध
| सात्यकि द्वारा शाल्व का वध
| सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध
| कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय
| दुर्योधन का पराक्रम
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम
| कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध
| उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम
| शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय
| अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा
| अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार
| अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार
| अश्वत्थामा आदि के द्वारा दुर्योधन की खोज
| सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार
| श्रीकृष्ण और अर्जुन की बातचीत
| अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध
| अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त
| सहदेव के द्वारा उलूक का वध
| सहदेव के द्वारा शकुनि का वध
ह्रदप्रवेश पर्व
बची हुई समस्त कौरव सेना का वध
| संजय का क़ैद से छूटना
| दुर्योधन का सरोवर में प्रवेश
| युयुत्सु का राजमहिलाओं के साथ हस्तिनापुर में जाना
गदा पर्व
अश्वत्थामा, कृपाचार्य और कृतवर्मा की सरोवर में दुर्योधन से बातचीत
| युधिष्ठिर का सेना सहित सरोवर पर जाना
| कृपाचार्य आदि का सरोवर से दूर हट जाना
| युधिष्ठिर और श्रीकृष्ण की बातचीत
| सरोवर में छिपे दुर्योधन के साथ युधिष्ठिर का संवाद
| युधिष्ठिर के कहने से दुर्योधन का सरोवर से बाहर आना
| दुर्योधन का किसी एक पांडव से गदायुद्ध हेतु तैयार होना
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को फटकारना
| श्रीकृष्ण द्वारा भीमसेन की प्रशंसा
| भीम और दुर्योधन में वाग्युद्ध
| बलराम का आगमन और सम्मान
| भीम और दुर्योधन के युद्ध का आरम्भ
| बलदेव की तीर्थयात्रा
| प्रभासक्षेत्र के प्रभाव तथा चंद्रमा के शापमोचन की कथा
| उदपान तीर्थ की उत्पत्ति तथा त्रित मुनि के कूप में गिरने की कथा
| त्रित मुनि का यज्ञ
| त्रित मुनि का अपने भाइयों का शाप देना
| वैशम्पायन द्वारा विभिन्न तीर्थों का वर्णन
| नैमिषारण्य तीर्थ का वर्णन
| बलराम का सप्त सारस्वत तीर्थ में प्रवेश
| सप्तसारस्वत तीर्थ की उत्पत्ति
| मंकणक मुनि का चरित्र
| औशनस एवं कपालमोचन तीर्थ की माहात्म्य कथा
| रुषंगु के आश्रम पृथूदक तीथ की महिमा
| आर्ष्टिषेण एवं विश्वामित्र की तपस्या तथा वरप्राप्ति
| अवाकीर्ण तीर्थ की महिमा और दाल्भ्य की कथा
| यायात तीर्थ की महिमा और ययाति के यज्ञ का वर्णन
| वसिष्ठापवाह तीर्थ की उत्पत्ति
| ऋषियों के प्रयत्न से सरस्वती नदी के शाप की निवृत्ति
| सरस्वती नदी के जल की शुद्धि
| अरुणासंगम में स्नान से राक्षसों और इन्द्र का संकटमोचन
| कुमार कार्तिकेय का प्राकट्य
| कुमार कार्तिकेय के अभिषेक की तैयारी
| स्कन्द का अभिषेक
| स्कन्द के महापार्षदों के नाम, रूप आदि का वर्णन
| स्कन्द की मातृकाओं का परिचय
| स्कन्द देव की रणयात्रा
| स्कन्द द्वारा तारकासुर, महिषासुर आदि दैत्यों का सेनासहित संहार
| वरुण का अभिषेक
| अग्नितीर्थ, ब्रह्मयोनि और कुबेरतीर्थ की उत्पत्ति का प्रसंग
| श्रुतावती और अरुन्धती के तप की कथा
| इन्द्रतीर्थ, रामतीर्थ, यमुनातीर्थ और आदित्यतीर्थ की महिमा
| असित देवल तथा जैगीषव्य मुनि का चरित्र
| दधीच ऋषि तथा सारस्वत मुनि के चरित्र का वर्णन
| वृद्ध कन्या का चरित्र
| वृद्ध कन्या का शृंगवान से विवाह तथा स्वर्गगमन
| ऋषियों द्वारा कुरुक्षेत्र की सीमा और महिमा का वर्णन
| प्लक्षप्रस्रवण आदि तीर्थों तथा सरस्वती की महिमा
| बलराम का नारद से कौरवों के विनाश का समाचार सुनना
| भीम-दुर्योधन का युद्ध देखने के लिए बलराम का जाना
| बलराम की सलाह से सबका कुरुक्षेत्र के समन्तपंचक तीर्थ में जाना
| समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी
| दुर्योधन के लिए अपशकुन
| भीमसेन का उत्साह
| भीम और दुर्योधन का वाग्युद्ध
| भीम और दुर्योधन का गदा युद्ध
| कृष्ण और अर्जुन की बातचीत
| अर्जुन के संकेत से भीम द्वारा दुर्योधन की जाँघें तोड़ना
| दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार
| युधिष्ठिर का भीम को अन्याय करने से रोकना
| युधिष्ठिर का दुर्योधन को सान्त्वना देते हुए खेद प्रकट करना
| क्रोधित बलराम को कृष्ण का समझाना
| युधिष्ठिर के साथ कृष्ण और भीम की बातचीत
| पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति
| कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर
| कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान
| पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना
| अर्जुन के रथ का दग्ध होना
| पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना
| कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना
| कृष्ण का पांडवों के पास लौटना
| दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप
| दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना
| दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना
| अश्वत्थामा का सेनापति पद पर अभिषेक
वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज