ऊधौ! मो मैं नैकु न नेह -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

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राग देश - तीन ताल


ऊधौ ! मो मैं नैकु न नेह।
या तैंई निकसत नहिं निष्ठुर प्रान, छाँड़ि यह देह॥
जात रहे मथुरा वे रथ पर सुफलक-सुत के संग।
फिरि-फिरि चितवत रहे दूरि तैं मो तन बिगत-‌उमंग॥
फिरि आ‌ई मैं जीवित तिन कौं त्यागि, लि‌एँ तन-प्रान।
प्रियतम-सून्य भवन, नहिं बिदर्‌यौ हिरदै बज्र-समान॥
मन में जीवन-लोभ, देह में अतिसै ममता-मोह।
रहे अभागे प्रान सहत अति दारुन बिथा-बिछोह॥
ऊधौ ! तुम ही समुझौ, मेरौ कहाँ स्याम में प्रेम।
दंभ-भर्‌यौ रोनौ यह जानत, नाहिं प्रेम कौ नेम॥

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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