ऊधौ! तुहरे नैन अधूरे -हनुमान प्रसाद पोद्दार

पद रत्नाकर -हनुमान प्रसाद पोद्दार

श्रीराधा माधव लीला माधुरी

Prev.png
राग बिहाग - तीन ताल


ऊधौ ! तुम्हरे नैन अधूरे।
पहुँचि न पावत मो उर महँ, जहँ बसत स्याम नित रूरे॥
छिन नहिं छाँड़त उर-मंदिर कौं, समुझि परम निज धाम।
लीला करत बिचित्र बिबिध बिधि पूरित प्रेम ललाम॥
तहँ न प्रबेस करन पावत को‌उ बिधि-हर-सुर-सिरमौर।
सुख-दुख, भुक्ति-मुक्ति, नहिं ग्यानाग्यान रहत तेहि ठौर॥
एक अनन्य स्याम-सुंदर कौ वह नित लीला-धाम।
दिब्य देस, तहँ बसौं नित्य हौं उनके सँग अभिराम॥
ऊधौ ! जदपि सखा तुम उन के, रहौ निरंतर संग।
अंतरंग पहुँचे नहिं, हरि जहँ क्रीड़त नाना रंग॥
जौ कहुँ हरि कौ रंग-भवन मम हृदय देखि तुम पावौ।
तौ तुम रस-मद-माते ह्वै सब जोग-ग्यान बिसरावौ॥

Next.png

टीका टिप्पणी और संदर्भ

संबंधित लेख

वर्णमाला क्रमानुसार लेख खोज

                                 अं                                                                                                       क्ष    त्र    ज्ञ             श्र    अः