- महाभारत शल्य पर्व के अंतर्गत 27वें अध्याय में अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु के वध का वर्णन हुआ है, जो इस प्रकार है[1]
विषय सूची
दोनों पक्ष के योद्धाओं का आपस में युद्ध
संजय कहते हैं- मान्यवर! उस सेना को देखकर तीन महारथी भीमसेन, अर्जुन और सहदेव युद्ध-सामग्री से सुसज्जित हो दुर्योधन के वध की इच्छा से सिंहनाद करते हुए आगे बढ़े। उन सबको बड़े वेग से धनुष उठाये एक साथ आक्रमण करते देख सुबल पुत्र शकुनि रणभूमि में आततायी पाण्डवों की ओर दौड़ा। आपका पुत्र सुदर्शन भीम का सामना करने लगा। सुशर्मा और शकुनि ने किरीटधारी अर्जुन के साथ युद्ध छेड़ दिया। नरेश्वर! घोड़े की पीठ पर बैठा हुआ आप का पुत्र दुर्योधन सहदेव के सामने आया। उसने बड़े यत्न से सहदेव के मस्तक पर शीघ्रतापूर्वक प्रास का प्रहार किया। आपके पुत्र द्वारा ताड़ित होकर सहदेव फुफकारते हुए विषधर सर्प के समान लंबी सांस खींचते हुए रथ के पिछले भाग में बैठ गये। उनका सारा शरीर लहूलुहान हो गया। प्रजानाथ! थोड़ी देर में सचेत होने पर क्रोध में भरे हुए सहदेव दुर्योधन पर पैने बाणों की वर्षा करने लगे।
अर्जुन द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध
कुन्तीपुत्र अर्जुन ने भी युद्ध में पराक्रम करके घोड़ों की पीठों से शूरवीरों के मस्तक काट गिराये। पार्थ ने अपने बहुसंख्यक बाणों द्वारा घुड़सवारों की उस सेना को छिन्न-भिन्न कर डाला तथा समस्त घोड़ों को धराशायी करके त्रिगर्त देशीय रथियों पर चढ़ाई कर दी। तब वे त्रिगर्त देशीय महारथी एक साथ होकर अर्जुन और श्रीकृष्ण को अपने बाणों की वर्षा से आच्छादित करने दगे। प्रभो! उस समय महायशस्वी पाण्डुनन्दन अर्जुन ने क्षुरप्र द्वारा सत्यकर्मा पर प्रहार करके उसके रथ की ईषा (हरसा) काट डाली। तत्पश्चात् उन महायशस्वी वीर ने शिला पर तेज किये हुए क्षुरप्र द्वारा उसके तपाये हुए सुवर्ण के कुण्डलों से विभूषित मस्तक को सहसा काट लिया। राजन! जैसे वन में भूखा सिंह किसी मृग को दबोच लेता है, उसी प्रकार अर्जुन ने समस्त योद्धाओं के देखते-देखते सत्येषु के भी प्राण हर लिये।
टीका टिप्पणी व संदर्भ
सम्बंधित लेख
महाभारत शल्य पर्व में उल्लेखित कथाएँ
शल्य और दुर्योधन वध के समाचार से धृतराष्ट्र का मूर्च्छित होना
| धृतराष्ट्र को विदुर द्वारा आश्वासन देना
| दुर्योधन के वध पर धृतराष्ट्र का विलाप करना
| धृतराष्ट्र का संजय से युद्ध का वृत्तान्त पूछना
| कर्ण के मारे जाने पर पांडवों के भय से कौरव सेना का पलायन
| भीम द्वारा पच्चीस हज़ार पैदलों का वध
| अर्जुन द्वारा कौरवों की रथसेना पर आक्रमण
| दुर्योधन का अपने सैनिकों को समझाकर पुन: युद्ध में लगाना
| कृपाचार्य का दुर्योधन को संधि के लिए समझाना
| दुर्योधन का कृपाचार्य को उत्तर देना
| दुर्योधन का संधि स्वीकर न करके युद्ध का ही निश्चय करना
| अश्वत्थामा का शल्य को सेनापति बनाने का प्रस्ताव
| दुर्योधन के अनुरोध पर शल्य का सेनापति पद स्वीकार करना
| शल्य के वीरोचित उद्गार
| श्रीकृष्ण का युधिष्ठिर को शल्यवध हेतु उत्साहित करना
| उभयपक्ष की सेनाओं का रणभूमि में उपस्थित होना
| कौरव-पांडवों की बची हुई सेनाओं की संख्या का वर्णन
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घमासान युद्ध
| पांडव वीरों के भय से कौरव सेना का पलायन
| नकुल द्वारा कर्ण के तीन पुत्रों का वध
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का भयानक युद्ध
| शल्य का पराक्रम
| कौरव-पांडव योद्धाओं के द्वन्द्वयुद्ध
| भीम के द्वारा शल्य की पराजय
| भीम और शल्य का भयानक गदा युद्ध
| दुर्योधन द्वारा चेकितान का वध
| दुर्योधन की प्रेरणा से कौरव सैनिकों का पांडव सेना से युद्ध
| युधिष्ठिर और माद्रीपुत्रों के साथ शल्य का युद्ध
| मद्रराज शल्य का अद्भुत पराक्रम
| अर्जुन और अश्वत्थामा का युद्ध
| अश्वत्थामा के द्वारा सुरथ का वध
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| पांडव सैनिकों और कौरव सैनिकों का द्वन्द्वयुद्ध
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन की पराजय
| युधिष्ठिर द्वारा शल्य की पराजय
| भीम द्वारा शल्य के घोड़े और सारथि का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य का वध
| युधिष्ठिर के द्वारा शल्य के भाई का वध
| सात्यकि और युधिष्ठिर द्वारा कृतवर्मा की पराजय
| मद्रराज के अनुचरों का वध और कौरव सेना का पलायन
| पांडव सैनिकों द्वारा पांडवों की प्रशंसा और धृतराष्ट्र की निन्दा
| भीम द्वारा इक्कीस हज़ार पैदलों का संहार
| दुर्योधन का अपनी सेना को उत्साहित करना
| धृष्टद्युम्न द्वारा शाल्व के हाथी का वध
| सात्यकि द्वारा शाल्व का वध
| सात्यकि द्वारा क्षेमधूर्ति का वध
| कृतवर्मा का सात्यकि से युद्ध तथा उसकी पराजय
| दुर्योधन का पराक्रम
| कौरव-पांडव उभयपक्ष की सेनाओं का घोर संग्राम
| कौरव पक्ष के सात सौ रथियों का वध
| उभय पक्ष की सेनाओं का मर्यादा शून्य घोर संग्राम
| शकुनि का कूट युद्ध और उसकी पराजय
| अर्जुन द्वारा श्रीकृष्ण से दुर्योधन के दुराग्रह की निन्दा
| अर्जुन द्वारा कौरव रथियों की सेना का संहार
| अर्जुन और भीम द्वारा कौरवों की रथसेना एवं गजसेना का संहार
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| सात्यकि द्वारा संजय का पकड़ा जाना
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्र के ग्यारह पुत्रों का वध
| भीम के द्वारा कौरवों की चतुरंगिणी सेना का संहार
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| अर्जुन के द्वारा सत्यकर्मा और सत्येषु का वध
| अर्जुन के द्वारा सुशर्मा का उसके पुत्रों सहित वध
| भीम के द्वारा धृतराष्ट्रपुत्र सुदर्शन का अन्त
| सहदेव के द्वारा उलूक का वध
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| समन्तपंचक तीर्थ में भीम और दुर्योधन में गदायुद्ध की तैयारी
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| दुर्योधन के धराशायी होने पर भीषण उत्पात प्रकट होना
| भीमसेन द्वारा दुर्योधन का तिरस्कार
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| पांडव सैनिकों द्वारा भीम की स्तुति
| कृष्ण के आक्षेप पर दुर्योधन का उत्तर
| कृष्ण द्वारा पांडवों का समाधान
| पांडवों का कौरव शिबिर में पहुँचना
| अर्जुन के रथ का दग्ध होना
| पांडवों का कृष्ण को हस्तिनापुर भेजना
| कृष्ण का हस्तिनापुर में धृतराष्ट्र और गांधारी को आश्वासन देना
| कृष्ण का पांडवों के पास लौटना
| दुर्योधन का संजय के सम्मुख विलाप
| दुर्योधन का वाहकों द्वारा अपने साथियों को संदेश भेजना
| दुर्योधन को देखकर अश्वत्थामा का विषाद एवं प्रतिज्ञा करना
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