अनाथ के नाथ प्रभु कृष्न स्वामी।
नाथ सारंगधर, कृपा करि मोहि पर, सकल अध-हरन हरि गरुड़गामी।
परयौ भव-जलधि मैं हाथ धरि काढ़ि मम दोष जनि धारि चित काम-कामी।
सूर बिनती करै, सुनहु नँद-नंद तुम, कहा कहाँ खोलि कै अंतरजामी।।214।।
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