अधर-रस मुरली लूटन लागी।
जा रस कौं षट रितु तप कीन्हौ, सो रस पियति सभागी।।
कहाँ रही, कहँ तैं इहँ आई, कौनैं याहि बुलाई?
चक्रित भई कहतिं ब्रजवासिनि, यह तौ भली न आई।।
सावधान क्यौं होति नहीं तुम, उपजी बुरी बुलाइ।।
सूरदास-प्रभु हम पर ताकौं, कीन्हौ सोति बजाइ।।1221।।