अधर-रस अपनौई करि लीन्हौ।
जो भावै सों अँचवति निधरक, अरु सबहिनि कौं दीन्हौ।।
मुरली हमहिं तुच्छ करि जानति, बैर इते पर मानै।
जैसी वह तैसी सब जानै, कुटिल कुटिल पहचानैं।।
अवगुन सानि गढ़ी नख-सिख लौं, तैसिये बुद्धि बिकासै।।
सूरदास-प्रभु के मुख आगैं, मीठे बचन प्रकासै।।1302।।