अद्भुत कौतु‍क देखि सखि -सूरदास

सूरसागर

दशम स्कन्ध

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राग सांरग


अद्भुत कौतु‍क देखि सखी री बृंदाबन नभ होड़ परी।
उत धन उदित सहित सौदामिनि, इतहिं मुदित राधिका हरी।।
उत बग-पाँति, सु इतहिं स्वाति-सुत-दाम, बिसाल सुदेस खरी।
ह्वै धन-गरज, इहाँ मुरली-धुनि जलधर उत, इत अमृत भरी।।
उतहि इद्रं-धनु, इत बनमाला अति विचित्र हरि कंठ धरी।।
सूरदास प्रभु-कुंवरि राधिका, गगन की सोभा दूरि करी।।1189।।

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टीका टिप्पणी और संदर्भ

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