अद्भुत कौतुक देखि सखी री बृंदाबन नभ होड़ परी।
उत धन उदित सहित सौदामिनि, इतहिं मुदित राधिका हरी।।
उत बग-पाँति, सु इतहिं स्वाति-सुत-दाम, बिसाल सुदेस खरी।
ह्वै धन-गरज, इहाँ मुरली-धुनि जलधर उत, इत अमृत भरी।।
उतहि इद्रं-धनु, इत बनमाला अति विचित्र हरि कंठ धरी।।
सूरदास प्रभु-कुंवरि राधिका, गगन की सोभा दूरि करी।।1189।।