अदभुत एक अनूपम बाग।
जुगल कमल पर गज वर-कीड़त, तापर सिंह करत अनुराग।।
रुचिर कपोत बसत ता ऊपर, ता ऊपर अमृत फल लाग।।
फल पर पुहुप, पुहुप पर पल्लव, ता पर सुक, पिक, मृग मद काग।
खंजन, धनुष, चंद्रमा ऊपर, ता ऊपर इक मनिधर नाग।।
अंग अंग प्रति और और छवि, उपमा ताकौ करत न त्याग।
'सूरदास' प्रभु पियौ सुधारस, मानौ अधरनि के बड़ भाग।।2110।।